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________________ कुशलता आ जाती है - इसीलिए । अभिनेता प्रेमी हो ही नहीं पाते। और तुम चकित होओगे, क्योंकि प्रेम का ही धंधा करते हैं, प्रेम का ही अभिनय करते हैं, चौबीस घंटे प्रेम की ही बात करते हैं, लेकिन डायलाग इतने याद हो जाते हैं कि अपनी प्रेयसी के सामने खड़े हो कर वे अपने दिल की कह रहे हैं। कि डायलाग ही बोल रहे हैं, कुछ पक्का नहीं होता । अभिनेता प्रेम में बिलकुल असफल हो जाते हैं, क्योंकि प्रेम की बात में बड़े सफल हो जाते हैं । ढंग सीख लेते हैं, आत्मा मर जाती है। यह तो सदा होता है। अगर सच में तुम्हारा प्रेम है तो अचानक तुम सब सोच कर आये, वह कचरा जैसा हो जायेगा। प्रेमी की आंख में आंख डालते ही तुम पाओगे, सोचा-समझा सब बेकार हो गया। नहीं, वह काम नहीं आता; कंकड़-पत्थर हो गये। अब उनकी बात भी उठाना ठीक नहीं है । शब्द छोटे पड़ जाते हैं, प्रेम बड़ा है। इसलिए प्रेम मौन से ही प्रगट होता है। 'बात भी आपके आगे न जुबां से निकली लीजिए आई हूं सोच के क्या-क्या दिल में ! मेरे कहने से न आ, मेरे बुलाने से न आ लेकिन इन अश्कों की तौहीन तो न कर!' आंसुओं की तौहीन कभी होती ही नहीं। आंसुओं का निमंत्रण तो सदा स्वीकार ही हो जाता है। जिन्होंने रोना सीख लिया उन्होंने तो पा लिया। आंसू से बहुमूल्य आदमी के पास कुछ भी नहीं है। तुम प्रभु के मंदिर में जा कर अगर दो आंसू चढ़ा आये तो तुमने सारे संसार के फूल चढ़ा दिए। और तुम्हारे आंसुओं की राह से ही परमात्मा तुममें प्रवेश कर जायेगा । जान कर अनजान बन जा पूछ मत आराध्य कैसा जबकि पूजा-भाव उमड़ा मृत्तिका के पिंड से कह दे कि तू भगवान बन जा ! जान कर अनजान बन जा ! तुम किसी भक्त को देखते हो, बैठा है झाड़ के किनारे, पत्थर के एक पिंड से प्रार्थना कर रहा है! तुम्हें हंसी आती है। तुम समझे नहीं। तुम बाहर हो उसके अंतर्जगत के । यह सवाल नहीं है। उसके लिए पत्थर पत्थर नहीं है। पूछ मत आराध्य कैसा जबकि पूजा - भाव उमड़ा मृत्तिका के पिंड से कह दे कि तू भगवान बन जा ! भक्त का भाव जहां आरोपित हो जाता है, वहां भगवान पैदा हो जाता है। भगवान तो सब जगह आरोपित होते ही प्रगट हो जाता है। है; भा तो अगर तुम्हारी आंखों में आंसू आ गये हैं तो ज्यादा देर न लगेगी। तुम्हारी आंखें आंसुओं से धुल जाने दो। उन्हीं धुली आंखों में, उन्हीं नहाई हुई आंखों में, सद्यः स्नात आंखों में, जिसे तुमने पुकारा खुदी को मिटा, खुदा देखते हैं 29
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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