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________________ दीया जल रहा है-यह समाधि। इन दोनों के बीच में कमरा भरा है, बहुत फर्नीचर-उसी फर्नीचर के इकट्ठे उपद्रव का नाम अहंकार, विचार-विचार, भाव, मैं यह, मैं वह, मैं ऐसा! कहीं भीतर तुम पूरे वक्त इसी चेष्टा में लगे हो कि सिद्ध कर दो कि तुम कौन हो। पता है ही नहीं कि तुम कौन हो और सिद्ध करने में लगे हो! देखते हो, कोई आदमी का पैर पैर पर पड़ जाता है तो तुम कहते होः 'जानते नहीं हो मैं कौन हं!' तुम्हें खुद पता है? ऐसा हुआ एक बार मैं एक स्टेशन पर ट्रेन में सवार हो रहा था। भीड़-भाड़ थी डब्बे के बाहर। लोग बड़ा धक्कम-धुक्की कर रहे थे। एक आदमी के पैर पर मेरा पैर पड़ गया। वह बोला कि 'आप देखते नहीं, अंधे हैं? देखते नहीं मैं कौन हूं?' मैंने कहाः मैं एक ज्ञानी की तलाश में ही था, आप मुझे बतायें कौन हैं? छोड़ें यह ट्रेन, जाने दें। मैंने कहाः यह बिस्तर रहा नीचे, आप बैठें। आप कृपा करके विराजें। अब और तो यहां कुछ है नहीं, सूटकेस पर ही बैठ जायें और मैं यहां स्टेशन पर प्लेटफार्म पर बैठ कर आपसे निवेदन करता हूं, आप मुझे समझा दें कि कौन हैं। वे कहने लगे कि आप पागल हैं। 'तुम्हीं कहे कि आपको पता है कि मैं कौन हूं, तो मैं समझा कि कम से कम आपको तो पता होगा ही।' • तुम्हें पता नहीं तुम कौन हो। सारी दुनिया को पता करवाना चाह रहे हो कि पता चल जाये कि मैं कौन हूं! पहले खुद तो पता लगा लो। जिसने खुद पता लगाया वह तो हंसने लगता है। वह तो कहता है : मैं हूं ही नहीं। अब यह बड़े मजे की बात है। यह खूब मजाक रही : जिसको पता चल जाता है कि मैं कौन हूं, वह तो कहता मैं हूं ही नहीं; और जिसको पता नहीं, वह लाख उपाय कर रहा है सिद्ध करने के कि मैं कौन हूं, मैं यह हूं, मैं वह हूं! हजार उपाधियां इकट्ठी कर रहा है, लेबिल चिपका रहा है, रंग-रोगन कर रहा है—मैं यह हूं! अज्ञानी सिद्ध करने की कोशिश में लगा है कि मैं हूं और ज्ञानी जामता है कि मैं हूं ही नहीं, केवल परमात्मा है। ___ कोई हर्जा नहीं। अगर अभी अज्ञान है तो अज्ञान है। तुम जरा भीतर जाओ। जरा खोजो। इस अंधेरे में कहीं परमात्मा बैठा है; तुम जरा दीया जलाओ। हम ऐसे मूर्छित हैं कि हमें पता नहीं। मुल्ला नसरुद्दीन ने एक दिन अपने फेमिली-डाक्टर को फोन करके बुलाया। डाक्टर साहब आये। गप्पें होती रहीं। ताश खेला गया। जब शाम होने लगी तो डाक्टर उठे, बोले अब चलता हूं, घर में सब ठीक-ठाक तो है न? मुल्ला ने सिर पीट लिया। बोला : अरे दोपहर से पत्नी बेहोश पड़ी है, इसलिए तो आपको बुलाया था। लेकिन होश मुल्ला को भी कहां! पत्नी बेहोश पड़ी, यह तो ठीक है; ये बेहोश बैठे हैं। डाक्टर आया तो गपशप होने लगी, तो ताश खेलने लगे, तो शराब ढाली गई होगी। पुराने दोस्त, पुराने यार मिल बैठे, तो गपशप हुई। भूल ही गये। अब याद आई कि पत्नी बेहोश पड़ी है। पत्नी बेहोश पड़ी है, क्या मुल्ला होश में है? होश में यहां बहुत कम लोग दिखाई पड़ते हैं। प्रभु-मंदिर यह देहरी 401
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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