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________________ हिला देना, उसी वक्त खात्मा कर दूंगा। ___अब तो सम्राट बहुत घबड़ाया। आंख तो बंद कर ली और इस डर में और घबड़ाहट में गया भी भीतर, सब तरफ झांकने भी लगा। अहंकार का तो कहीं पता भी न चला। घंटे बीत गये वह एक गहरे ध्यान में लीन हो गया। सूरज उगने लगा सुबह का और वह तल्लीन हो गया। इस अहंकार को खोजने के लिए इतनी आतुरता से गया कि विचार तो बंद हो गये। ___जब तुम वस्तुतः त्वरा और तीव्रता से भीतर जाओगे, विचार बंद हो जायेंगे। मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, क्या करें, ध्यान नहीं होता, विचार-विचार चलते रहते हैं! तुम कभी...भीतर जाने की त्वरा ही नहीं तुम्हारे भीतर। मुर्दे-मुर्दे जाते हो कि चलो देखें, शायद! इस 'शायद' से काम नहीं होता कि चलो ये कहते हैं, जरा आंख बंद करके देख लें एक सेकेंड कि क्या होता है! __और बोधिधर्म सामने बैठा था डंडा लिए और वह डंडा मार सकता है। सम्राट गया। उसने सब तरफ खोजा। कहीं कोई अहंकार नहीं। अहंकार की तो बात दूर, अहंकार की छया भी नहीं। 'मैं' का भाव ही कहीं भीतर नहीं है। तुम हो; 'मैं' नहीं है। अस्तित्व है; 'मैं' नहीं है। 'मैं' का कोई कांटा ही नहीं गड़ा है कहीं भीतर।...शांत होने लगा। फिर तो बोधिधर्म ने, जब सूरज उगने लगा, उसे हिलाया और कहा कि बस आंख खोलो, अब मुझे उत्तर दे दो। सम्राट पैरों पर गिर पड़ा। उसने कहाः आपने ठीक वचन दिया था, आपने निश्चित ही मिटा दिया। मैं कभी भीतर गया ही नहीं। मैं बाहर ही तलाश करता रहा कि अहंकार से कैसे छुटकारा हो। और अहंकार तो केवल धारणा मात्र है। - कोई भी बच्चा अहंकार लेकर थोड़े ही पैदा होता है; हम सिखा देते हैं। सीखी हुई बात है। सिर्फ सीखी हुई बात को भूलना है। कुछ है नहीं। तुम कभी शांत बैठ कर खोजोः क्या है अहंकार? तुम कुछ नहीं पाओगे। जो वू, सम्राट व ने नहीं पाया, तुम भी नहीं पाओगे। अहंकार सिर्फ एक खयाल है, एक सपना है कि मैं कुछ हूं। इसीलिए तो हर कोई तोड़ देता है तुम्हारे अहंकार को। रास्ते पर चले जा रहे हैं, किसी ने धक्का दे दिया...। __मुल्ला नसरुद्दीन मुझसे बोला कि जिंदगी बड़ी अजीब है। पहले मैं अपनी प्रेयसी को लेकर चौपाटी जाता था तो उधर बैठता था; एक आदमी आया, होगा कम से कम डेढ़ सौ किलो वजन का आदमी। उसने ऐसा लात मार कर...और रेत मेरी आंख में फेंक दी। अब प्रेयसी के सामने बड़ी बदनामी हो गई। अब मैं दुबला-पतला आदमी। मैंने सोचा, यह हड्डी-पसली तोड़ देगा। तो मैंने दो साल तो प्रेम इत्यादि एक तरफ रख दिया, बस दंड-बैठक, दंड-बैठक। जब तक डेढ़ सौ किलो वजन नहीं हो गया, तब तक फिर मैं चौपाटी नहीं गया। फिर अपनी प्रेयसी को लेकर चौपाटी पहुंचा; एक आदमी आ गया, वह कोई होगा दो सौ किलो वजन का। उसने फिर पैर मारा और रेत मेरी आंखों में उछाल दी। फिर मेरी प्रेयसी के सामने भद्द हो गई। पर मुझसे वह कहने लगा ः अब मैं करूं क्या? अगर ऐसे ही चलता रहा तो मैं जिंदगी भर दंड-बैठकें मार-मार कर मर जाऊंगा। और कोई न कोई हमेशा मौजूद है। कोई न कोई आंख में रेत फेंक ही सकता है। तुमने देखा, तुम जिंदगी भर करते क्या हो! तुमने बामेहनत, मुश्किल कर-करा कर किसी तरह प्रभु-मंदिर यह देह री 399
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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