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________________ सूक्ष्म हैं, बड़े बारीक हैं। वह हर जगह से अपनी तरकीब खोज लेता है। मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी अपने मायके गई। बार-बार नसरुद्दीन को लिखती कि कुछ दिनों के लिए आप भी बनारस आ जायें। लेकिन मुल्ला नसरुद्दीन पूना छोड़ता नहीं। आखिरकार उनकी श्रीमती ने पत्र के साथ एक चित्र भी भेजा जिसमें एक पार्क की बेंच पर एक जोड़ा बैठा हुआ है-पति-पत्नी एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए, एक-दूसरे की आंखों में आंखें डाले हुए। और पास के ही एक बेंच पर उनकी श्रीमती जी अकेली बैठी हैं-चिंतित, उदास अवस्था में, खोई-खोई, जैसे सब संपत्ति खो गई है। साथ के पत्र में लिखा था ः 'देखो, तुम्हारे बिना मैं कितनी अकेली हो गई हूं!' __ मुल्ला ने चित्र को देखा और गुस्से से भर कर तार किया ः 'यह सब तो ठीक है, पर यह लिखो कि फोटो किसने खींची?' ___ आदमी के मन में अगर संदेह है तो कोई रास्ता खोज ही लेगा। अहंकार अगर है तो कोई रास्ता खोज ही लेगा। तुम इधर से दबाओगे उधर से निकल आयेगा। तुम इधर से बचोगे, कोई और नया मार्ग खोज कर आ जायेगा। साधक को स्मरण रखना है कि अहंकार के सारे मार्ग पहचान लिए जायें। - मैं तुमसे अहंकार छोड़ने को नहीं कह रहा हूं, क्योंकि अहंकार छोड़ना भी अहंकार बन जाता है। मैं तुमसे इतना ही कह रहा हूं : तुम कृपा करके अहंकार के मार्ग पहचानो-कहां-कहां से आता है, कैसे-कैसे आता है, कैसी सूक्ष्म प्रक्रियाएं लेता है, कैसे वेश पहनता है? तुम पहचान भी नहीं पाते। केभी विनम्रता बन कर आ जाता है। अब महामानव बन कर आ रहा है। अब वह कह रहा है कि तुम, अरे तुम कोई साधारण मानव हो! तुम महामानव हो। तुम्हें कुछ करके दिखाना है दुनिया में। तुम्हें नाम जाना है दुनिया में। अभी धन कमाना था, अभी चुनाव जीतना था; अब किसी तरह वहां से छुटे तो अब महामानव होना है। लेकिन जो है. उससे तम राजी नहीं: कछ हो कर दिखाना है। ____ मैं तुमसे कह रहा हूं : तुम जो हो ऐसे ही तुम सुंदर हो। तुम जैसे हो इसी में विश्राम को उपलब्ध हो जाओ। तुम जरा मेरी बात को समझो, गुनो! थोड़ा इसका रस लो। तुम जैसे हो वैसे में ही राजी हो जाओ। क्रोध आये तो कहना कि मैं क्रोधी हूं, तो आता है। किसी से झंझट-झगड़ा हो जाये तो कह देना कि मैं झंझटी आदमी हूं, तो झंझट होती है। ऐसा मैं हूं! अपने हृदय को खोल कर रख दो, सहज, जैसे हो। और तब तुम्हारे भीतर सहज मानव पैदा होगा, जिसको बाउल कहते हैं : आधार-मानुष, सहज मनुष्य। उस सहज की तलाश हो रही है। साधो, सहज समाधि भली! तुम कुछ असहज करके दिखाना चाहते हो। तुम कुछ ऐसा करके दिखाना चाहते हो जो किसी ने न किया हो, ताकि तुम ऊपर दिखाई पड़ो; ताकि तुम सबसे पृथक, श्रेष्ठ मालूम पड़ो। तुम्हारे तथाकथित महात्माओं में और तुम्हारे राजनीतिज्ञों में बहुत फर्क नहीं होता, क्योंकि राजनीति का मौलिक अर्थ इतना ही होता है कि दूसरों को नीचे दिखाना है; अपने को ऊपर, दूसरे को नीचे। जहां ऐसी वृत्ति है वहां राजनीति है। और जहां ऐसा भाव आ गया कि हम सब एक ही के हिस्से हैं और एक ही हममें विराजमान, कौन ऊपर कौन नीचे, एक की ही लीला है, बुरा भी वही भला भी वही, छोटा भी वही बड़ा भी वही, राम भी वही रावण भी वही—जिस दिन ऐसा भाव आ गया उस 'संन्यास-सहज होने की प्रक्रिया 341
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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