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________________ भागने से क्या होगा ? रिश्तेदार तुम्हारे हैं। तुम दूसरी जगह जा कर रिश्तेदार खोज लोगे। जाओगे कहां ? तुम सोचते हो, तुम्हारे गांव में ही शराबी हैं! जिस गांव में जाओगे वहां शराबी हैं। एक नौकरी छोड़ोगे, दूसरी नौकरी पर जाओगे, वहां रिश्वत चल रही है। तुम भागोगे कहां ? भागने से कुछ भी न होगा । जागो ! कौन तुम्हें जबर्दस्ती शराब पिला रहा है? तुम जाग जाओ, तुम पीयोगे नहीं। तुम कभी नहीं कहते कि फलां आदमी नहीं माना, इसलिए जहर पी लिया। कि नहीं, वह बहुत आग्रह कर रहा था, इसलिए पी लिया। तुम जहर को जानते हो तो पीते नहीं। कोई कितने ही आग्रह करे, कोई कितनी ही खुशामद करे, तुम कहोगे : 'बंद करो बकवास ! यह भी कोई बात हुई ! जहर!' शराब अगर तुम्हें जागरण में जहर दिखाई पड़ गई तो कौन पीता है, कौन पिलाता है ? शायद तुम्हारी मौजूदगी दूसरों के पीने में भी बाधा बन जाये । कोई तुम्हें पिला नहीं सकता। कोई उपाय नहीं है। इस जगत में तुम जो हो, दूसरों पर जिम्मेदारी मत डालो। वह तरकीब है बचने की : 'क्या करें, रिश्तेदार मांस-मदिरा खाते हैं।' नहीं, तुम खाना चाहते हो, रिश्तेदारों पर टाल रहे हो। तुम जागना नहीं चाहते; तुम कहते हो, मजबूरी है, करना पड़ता है ! लेकिन मैं तुमसे कहता हूं: इस दुनिया में कोई चीज तुम मजबूरी से नहीं कर रहे हो। तुम करना चाहते हो, इसलिए कर रहे हो। मजबूरी तो तरकीब है। वह तो तुम्हारा रैशनालाइजेशन है। वह तुम कहते हो : 'ऐसी स्थिति है, नहीं करेंगे तो कैसे चलेगा!' न चले, क्या करेंगे रिश्तेदार ? तुम्हें निमंत्रण पर नहीं बुलायेंगे। अच्छा है। तुम सौभाग्यशाली ! धन्यवाद दे देना कि बड़ी कृपा आपकी कि अब नहीं बुलाते । रिश्वत न लोगे - थोड़ी गरीबी होगी, थोड़ी मुश्किल होगी - ठीक है। मैं तुमसे कह भी नहीं रहा कि तुम ईमानदार रहोगे तो छप्पर खोल कर परमात्मा तुम्हारे घर में धन बरसा देगा । और जो तुमसे ऐसा कहते हैं वे झूठे हैं। और वे तुम्हें धोखा देते हैं। और उनके कारण दुनिया में बड़ी बेईमानी है। मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं : 'हम ईमानदार हैं, लेकिन बेईमान मजा कर रहे हैं !' मैंने कहा : तुमसे कहा किसने कि ईमानदार मजा करेंगे ? जिन्होंने कहा, उन्होंने तुम्हें धोखा दे दिया। वह मजे की बात ही तो बेईमान बनने का सूत्र है। बेईमान मजे कर रहे हैं! और तुम ईमानदार हो, तुम मजा नहीं कर रहे ! मजा क्या है ? वे कहते हैं: ‘बेईमानों ने बड़ा मकान बना लिया।' तो अगर बड़ा मकान बनाना है तो तुम बड़ा उपाय कर रहे हो। तुम बेईमानी की तकलीफ भी नहीं भोगना चाहते और बड़ा मकान भी बनाना चाहते हो — ईमानदार रह कर ! ईमानदार हो तो मकान छोटा ही रहेगा। - लेकिन छोटे मकान के भी सुख हैं! बड़े मकान में ही सुख होते, यह तुमसे कहा किसने ? तुमने बड़े मकान में रहते आदमी को सुखी देखा है ? मुश्किल से देखोगे । बहुत धन में सुख होता है, ऐसा तुमसे कहा किसने? बड़े से बड़े सम्राट को सुख की नींद आती है ? बड़े से बड़े धनी को शांति है ? चैन है ? नहीं, लेकिन तुम बाहर का रख-रखाव देखते हो... । तुम्हारा दिल भी तो इन्हीं चीजों पर है कि 'मकान तो हमारे पास भी बड़ा हो, कार हमारे पास भी बड़ी हो, धन का अंबार लगे—और लग जाये ईमानदारी से और रिश्वत लेना न पड़े ! और हम अपनी माला जपते, ध्यान भी करते रहें और ये सब चीजें भी साथ आ जायें!' तुम असंभव की मांग कर रहे हो। तो फिर बेईमान के साथ अन्याय हो 18 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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