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तुम्हीं को जैसे और बड़े रूप में पैदा किया गया हो। तुम्हारी जितनी वृत्तियां हैं, सब मौजूद हैं। कोई वृत्ति कम नहीं हो गई है। धन के लिए लोलुप हैं, पद के लिए लोलुप हैं, वासनाओं से भरे हैं— अब और क्या चाहिए ! और क्या फर्क होने वाला है !
तो अगर तुम डर कर ही भाग रहे हो तो मैं कहता हूं तुम बड़ी मुश्किल में पड़ोगे। तुम यहां भी चूकोगे, वहां भी चूकोगे। डर कर भागने को मैं नहीं कहता। मैं तो तुमसे कहता हूं: रिश्वत में दुख है। फर्क समझ लेना। नरक मिलेगा, ऐसा नहीं – नरक मिलता है अभी, यहीं । चोरी में दुख है । मैं यह नहीं कहता कि चोरी के फल में दुख मिलेगा। चोरी में दुख है । वह चोर हो जाने में ही पीड़ा है, आत्मग्लानि है, कष्ट है, अग्नि है । कहीं कढ़ाए कोई जल रहे हैं, जिनमें तुम्हें फेंका जायेगा – ऐसा नहीं । चोरी करने में ही तुम अपना कढ़ाहा खुद जला लेते हो। अपनी ही चोरी आग में खुद जलते हो । झूठ बोलते हो, तुम्हीं पीड़ा पाते हो ।
तुमने खयाल नहीं किया कि जब सत्य बोलते हो तो फूल जैसे खिल जाते हो ! जब झूठ बोलते हो तो कैसी कालकोठरी में बंद हो जाते हो ! एक झूठ बोलो तो दस बोलने पड़ते हैं । फिर एक को बचाने के लिए दूसरा, दूसरे को बचाने के लिए तीसरा - एक सिलसिला है, जिसका फिर कोई अंत नहीं होता ।
सच के साथ एक मजा है। सत्य बांझ है, उसकी संतति नहीं होती । सत्य पहले से ही बर्थकंट्रोल कर रहा है। एक दफा बोल दिया, मामला खत्म। उनकी कोई पैदाइश नहीं है कि फिर उनके बच्चे और उनके बच्चे ! झूठ बिलकुल हिंदुस्तानी है, लाइन लगा देता है बच्चों की ! और बाप पैदा कर रहा है और उनके बेटे भी पैदा करने लगते हैं और उनके बेटे भी पैदा करने लगते हैं—और एक संयुक्त परिवार है झूठ का, उसमें काफी लोग रहते हैं। और एक झूठ दूसरे झूठ को ले आता है। तुम जब झूठ से घिरते हो तो निकलना मुश्किल हो जाता है।
तुम खयाल करना, देखना, एक झूठ दूसरे में ले जाता है । और पहला झूठ छोटा होता है, दूसरा और बड़ा चाहिए; क्योंकि बचाने के लिए बड़ा झूठ चाहिए। फिर झूठ बड़ा होता जाता है। तुम दबते जाते हो झूठ पहाड़ के नीचे। तुम सड़ने लगते हो।
तुम क्रोध करके देखो। जब तुम प्रेम करते हो तब तुम्हारे भीतर एक सुवास उठती है, एक संगीत ! कोई पायल बज उठती है ! क्षण भर को तुम स्वर्ग में होते हो। जब तुम क्रोध करते हो, तुम नर्क में गिर जाते हो।
मैं तुमसे कहता हूं कि स्वर्ग और नर्क कहीं भौगोलिक अवस्थाएं नहीं हैं। स्वर्ग और नर्क तुम्हारे चित्त की दशायें हैं । प्रतिक्षण तुम स्वर्ग और नर्क के बीच डोलते हो; जैसे घड़ी का पेंडुलम डोलता है।
मैं कहता हूं : साक्षी बनो, भगोड़े नहीं । भगोड़े में तो लोभ, मोह, भय... । भगोड़ा यानी भय से जो भागा। साक्षी का मतलब है : जो बोध में जागा । तुम जाग कर देखो। फिर जो जाग कर देखने में सुंदर, सत्य, शिवम; जो प्रीतिकर, आह्लादकारी, रसपूर्ण लगे - स्वभावतः तुम उसे भोगोगे । और जो कांटा चुभाये, दुख लाये, नर्क लाये, स्वभावतः तुम्हारे हाथ से गिरने लगेगा।
तुम पूछते हो कि 'आप कहते हैं भागो मत, जागो। साक्षी बनो। लेकिन नौकरी के बीच रिश्वत से और रिश्तेदारों के बीच मांस-मदिरा से भागने का मन होता है।'
खुदी को मिटा, खुदा देखते हैं
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