SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चलना होता है। और रामकृष्ण कहते थे, हर अनुभव से गुजर जाना जरूरी है। तुम बहुत चकित होओगे, मैं तुम्हें उनके जीवन का एक उल्लेख बताऊं । शायद तुमने कभी सुना भी न हो, क्योंकि उनके भक्त उसकी बहुत चर्चा नहीं करते। जरा उलझन भरा है। रामकृष्ण ने एक दिन मथुरानाथ को – उनके एक भक्त को — कहा कि सुन मथुरा, किसी को बताना मत, मेरे मन में रात एक सपना उठा कि सुंदर बहुमूल्य सिल्क के कपड़े पहने हुए हूं, गद्दा-तकिया लगा कर बैठा हूं और हुक्का गुड़गुड़ा रहा हूं। और हुक्का गुड़गुड़ाते मैंने देखा कि मेरे हाथ पर जो अंगूठी सोने की बड़ी शानदार है, उसमें हीरा जड़ा है। अब तुझे इंतजाम करना पड़ेगा, क्योंकि जरूर यह सपना उठा तो जरूर यह वासना मेरे भीतर होगी। इसको पूरा करना पड़ेगा, नहीं तो यह वासना मुझे भटकायेगी। अगली जिंदगी में आना पड़ेगा, हुक्का गुड़गुड़ाना पड़ेगा। तो तू इंतजाम कर दे, किसी को बताना मत। लोग तो समझेंगे नहीं। मथुरा तो उनका बिलकुल पागल भक्त था । उसने कहा कि ठीक। वह गया। वह चोरी-छिपे सब इंतजाम कर लाया। बहुमूल्य हीरे की अंगूठी खरीद लाया। शानदार हुक्का लखनवी ! बहुमूल्य से बहुमूल्य रेशमी वस्त्र । और आश्रम पीछे गंगा के तट पर उसने गद्दा तकिया लगा दिया और रामकृष्ण बैठे शान से गद्दा - तकिया लगा कर अंगुली में अंगूठी डाल कर हुक्का बगल में ले कर गुड़गुड़ाना शुरू किया। वह पीछे छिपा झाड़ के देख रहा है कि मामला अब क्या होता है ! वे अंगूठी देखते जाते हैं और कहते हैं कि 'ठीक, बिलकुल वही है । देख ले रामकृष्ण, ठीक से देख ले। और खूब मजा ले ले प्यारे, नहीं तो फिर आना पड़ेगा।' कपड़ा भी छू कर देखते हैं कि ठीक बड़ा गुदगुदा है। कहते हैं, 'रामकृष्ण, ठीक से देख ले, नहीं तो फिर इसी कपड़े के पीछे आना पड़ेगा। भोग ले !' हुक्क़ा गुड़गुड़ाते हैं और कहते हैं, 'रामकृष्ण, ठीक से गुड़गुड़ा ले !' बस एक-दो-तीन-चार मिनट यह चला, पांच मिनट चला होगा । फिर खिलखिला कर खड़े हो गये, अंगूठी गंगा में फेंक दी, हुक्का तोड़ कर उस पर थूका और उसके ऊपर कूदे और कपड़े फाड़ कर ... । तो मथुरा घबड़ाया कि अब ये क्या पागल हो रहे हैं। एक तो पहले ही यह पागलपन था - यह हुक्का गुड़गुड़ाना। किसी को पता चल जाये तो कोई माने भी न! अगर मैं हुक्का गुड़गुड़ाऊं तो लोग मान भी लें कि चलो गुड़गुड़ा रहे होंगे, इनका कुछ भरोसा नहीं। लेकिन रामकृष्ण हुक्का गुड़गुड़ायें, मथुरा भी किसी को कहेगा तो कोई मानने वाला नहीं है। और अब यह क्या हो रहा है ! और उन्होंने गद्दे-तकिए भी उठा कर गंगा में फेंक दिए । नंग-धड़ंग हो गये, सब कपड़े फाड़ डाले और मथुरा को बुलाये कि खतम ! अब आगे आने की कोई जरूरत न रही। देख लिया, कुछ सार नहीं है। रामकृष्ण का कहना यह था कि जो भी भाव उठे, उसे पूरा कर ही लेना । रामकृष्ण भगोड़ापन नहीं सिखाते थे। विराग उनकी शिक्षा न थी । वे कहते थे, राग में हो तो राग को ठीक से भोग लो, लेकिन जानते रहना : राग से कभी कोई तृप्त नहीं हुआ । 1 तो यह जो संस्मरण है कि चांदी और मिट्टी को एक साथ में ले कर और गंगा में डाल देते थे, यह जिसके सामने डाली होगी, उस आदमी के लिए इसमें कुछ इशारा होगा। इससे रामकृष्ण की चित्त की दशा का पता नहीं चलता । यह उपदेश है। और जब भी तुम महापुरुषों के, परमज्ञानियों के उपदेश सुनो, तो इस बात का ध्यान रखना कि किसको दिए गये ! क्योंकि देने वाले से कम संबंध है, जिसको खुदी को मिटा, खुदा देखते हैं 13
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy