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________________ रहे हो, यही आश्चर्य है ! सिग्मंड फ्रायड ने लिखा है कि आदमी, सभी आदमी, पागल क्यों नहीं हैं - यह आश्चर्य है ! होने चाहिए सभी पागल । अगर देखें आदमी के मन की हालत तो होने चाहिए सभी पागल। कुछ लोग कैसे अपने को सम्हाले हैं और पागल नहीं हैं; यह चमत्कार है। बुद्धपुरुषों के पास कोई मन नहीं है, इसलिए मानसिक पीड़ा का कोई कारण नहीं। तीसरा प्रश्न : परमहंस रामकृष्ण के जीवन में दो उल्लेखनीय प्रसंग हैं। एक कि वे एक हाथ में बालू और दूसरे में चांदी के सिक्के रख कर दोनों को एक साथ गंगा नदी में गिरा देते थे । और दूसरा कि जब स्वामी विवेकानंद ने उनके बिस्तर के नीचे चांदी का सिक्का छिपा दिया तो परमहंस देव बिस्तर पर लेटते ही पीड़ा से चीख उठे थे। महागीता के वीतरागता के सूत्र के संदर्भ में इन दो प्रसंगों पर हमें कुछ समझाने की अनुकंपा करें। रा मकृष्ण के जीवन के ये दोनों प्रसंग अब तक ठीक से समझे भी नहीं गये हैं; क्योंकि जिन्होंने इनकी व्याख्या की है, उन्हें परमहंस दशा का कुछ भी पता नहीं है। इनकी व्याख्या साधारण रूप में की गई है। रामकृष्ण एक हाथ में चांदी और एक हाथ में रेत को रख कर गंगा में गिरा देते हैं, तो हम समझते हैं कि रामकृष्ण के लिए चांदी और मिट्टी बराबर है। स्वभावतः, यह सीधा अर्थ हो जाता है। लेकिन अगर यही सच है कि रामकृष्ण के लिए सोना और मिट्टी, चांदी और मिट्टी बराबर है, तो दोनों हाथों में मिट्टी रख कर क्यों नहीं गिरा देते ? एक हाथ में चांदी रख कर क्यों गिराते हैं? कुछ फर्क होगा । कुछ थोड़ा भेद होगा। नहीं, यह व्याख्या ठीक नहीं है। रामकृष्ण के लिए तो कुछ भी भेद नहीं है । और यह गिराना भी रामकृष्ण के लिए अर्थहीन है। रामकृष्ण विरागी नहीं हैं, वीतरागी हैं। यह विरागी के लिए तो ठीक है कि विरागी कहता है मिट्टी-चांदी सब बराबर, सब मेरे लिए बराबर है, यह सोना भी मिट्टी है। यह विरागी की भाषा है। रामकृष्ण वीतरागी हैं। यह परमहंस की भाषा हो नहीं सकती। फिर रामकृष्ण ऐसा क्यों कर रहे हैं? यह उनके लिए कर रहे होंगे जो उनके आसपास । यह उनके लिए संदेश है। जो राग में पड़ा है, उसे पहले विराग सिखाना पड़ता है। जो विराग में आ गया, उसे फिर वीतरागता सिखानी पड़ती है। कदम-कदम 12 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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