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मन में चलती है! कितनी परेशानी मन में होती है! ____ मैंने सुना है, एक आदमी था, उसका जहाज डूब गया। वह बड़ा आर्किटेक्ट था। वह एक जंगली टापू पर लग गया। वहां कोई भी न था। यहूदी था वह आर्किटेक्ट। वर्षों बीत गये। कुछ काम तो था नहीं वहां। लकड़ियां खूब उपलब्ध थीं, पत्थर के खूब ढेर लगे थे तो उसने कई मकान बना डाले। बैठे-बैठे करता क्या? वही कला जानता था। सड़क बना ली। ___ कोई बीस वर्ष बाद कोई जहाज किनारे लगा। उस आदमी को देख कर उन्होंने कहा कि तुम आ जाओ, हम तुम्हें ले चलें वापिस। उसने कहा, इसके पहले कि आप मुझे ले चलें, मैं सभी को निमंत्रित करता हूं कि मैंने जो बीस वर्षों में बनाया उसे देख तो लें! उसे देखने फिर कभी कोई नहीं आयेगा।
वे सब देखने गये। वे बड़े चकित हुए। उसने एक मंदिर बनाया–सिनागॉग। उसने कहा कि यह मंदिर है जिसमें मैं रोज प्रार्थना करता हूं। और सामने एक मंदिर और था। तो उन यात्रियों ने पूछा कि यह तो ठीक है; तुम अकेले ही हो इस द्वीप पर; तुमने एक मंदिर बनाया; पूजा करते हो। यह दूसरा मंदिर क्या है? उसने कहा : 'यह वह मंदिर है जिसमें मैं नहीं जाता।'
अब अकेला मंदिर जिसमें हम जाते हैं, उसमें तो कुछ मजा ही नहीं। मस्जिद भी तो चाहिए न, जिसमें तुम नहीं जाते! गिरजा भी तो चाहिए, जिसमें तुम नहीं जाते! उसने वह मंदिर भी बना लिया है, जिसमें नहीं जाता है! काम पूरा कर लिया है। जाने के लिए भी मंदिर बना लिया है; न जाने के लिए
भी मंदिर बना लिया है। . न जाने के लिए मंदिर! लगेगा व्यर्थ तुमने श्रम किया; लेकिन तुम अपने मन में तलाश करना। तुम वे भी योजनाएं करते हो जो तुम्हें करना है; तुम उनकी भी योजनाएं करते हो जो तुम्हें नहीं करना है। तुम नहीं करने की भी योजना करते हो। तुम उन चीजों से भी जुड़े हो जो तुम्हारे पास हैं। तुम उनसे भी जुड़े हो जो तुम्हारे पास नहीं हैं। दूसरे के पास हैं जो चीजें, उनसे भी तुम जुड़े हो। पड़ोसी के गैरेज में जो कार रखी है उससे भी तुम जुड़े हो। उससे तुम्हारा कुछ लेना-देना नहीं है; उससे भी तुम जुड़े हो। उससे भी तुमने नाता बना लिया है। · और अप्राप्त के कारण भी तुम बड़े सुख-दुख पाते हो।
मेरे एक मित्र थे; डाक्टर हैं। उनको एक ही पागलपन थाः पहेलियां भरना। डाक्टरी-वाक्टरी चले न। चलने की सुविधा ही नहीं उनको, क्योंकि पहेलियां इतनी उनको भरनी पड़ें कि मरीज आया, मरीज से कहें कि बैठो अभी, अभी बीच में बोलना मत। अभी पहेली बिलकुल आ ही रही थी कि तू कहां से बीच में आ गया! बिलकुल शब्द जबान पर रखा था, तूने गड़बड़ कर दिया।
धीरे-धीरे मरीज भी उनके पास आने बंद हो गये। मगर उनको चिंता भी न थी। उनको चिंता एक ही थी कि इस महीने पचास हजार आ रहा है; इस महीने लाख आ रहा है। मगर वह कभी आये न । जब भी मैं जाऊं तो वे हमेशा कहें : अगले महीने...पुरस्कार बिलकुल निश्चित है इस बार! ____ मैंने उनसे कहा कि देखो, बरसों हो गए सुनते, पुरस्कार तुम्हें मिलता नहीं। तुम एक काम करो तो शायद मिल जाये। तुम मेरे भाग्य को अपने साथ जोड़ लो।
उन्होंने कहा, 'ऐसी क्या तरकीब?' वे बड़े खुश हुए; बोले : 'बताओ। पहले क्यों नहीं कहा? जरूर मेरे भाग्य में खराबी तो है, तभी तो नहीं मिलता। पर तुम्हारे भाग्य को कैसे जोड़ लूं?'
धर्म अर्थात सन्नाटे की साधना
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