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________________ न ज्ञानफलं प्राप्तं योगाभ्यासफलं तथा। तृप्तः स्वच्छेन्द्रियो नित्यमेकाकी रमते तु यः।। 'जो पुरुष तृप्त है, शुद्ध इंद्रिय वाला है और सदा एकाकी रमण करता है, उसी को ज्ञान और योगाभ्यास का फल प्राप्त हुआ है।' एक-एक शब्द को ध्यानपूर्वक समझना। ' पहली बातः साधारणतः लोग सोचते हैं, एकाकी रमेंगे तो ज्ञान उपलब्ध होगा। यह सूत्र उलटा है। यह कहता है : जो एकाकी रमने में सफल हो गया उसे ज्ञान का फल मिल गया। एकाकी रमने से कोई ज्ञान को नहीं पाता; ज्ञान को पाने से एकाकी होने की क्षमता आती है। अकेले भाग जाने से तुम ज्ञान को उपलब्ध न हो जाओगे; हिमालय की कंदराओं में बैठ कर ज्ञान को उपलब्ध न हो जाओगे। तुम तो तुम ही रहोगे; जो बाजार में था वही हिमालय की गुफा में बैठ जायेगा। बाहर की स्थिति को बदलने से भीतर कोई क्रांति न हो जायेगी। घर में हो कि मंदिर में हो, क्या फर्क पड़ेगा? और भीड़ में हो कि अकेले, क्या फर्क पड़ेगा? तुम तो तुम ही रहोगे। यह तुम्हारा होना इतनी आसानी से नहीं बदलता। तो कोई संसार को छोड़ कर चला गया है; सोचता है, संसार को छोड़ने से बदलाहट हो जायेगी। बदलाहट हो जाये तो संसार छूट जाता है। लेकिन संसार को छोड़ने से बदलाहट नहीं होती। ___ यह सूत्र अत्यधिक महत्वपूर्ण है। मेरी पूरी देशना यही है। लोगों ने अक्सर कारण को कार्य समझ लिया है, कार्य को कारण समझ लिया है। लोग सोचते हैं : भोग छूट जाये तो त्याग फलित हो जायेगा। नहीं, ऐसा नहीं है। त्याग फलित हो जाये तो भोग छूट जाता है। त्याग का रस आ जाये तो भोग विरस हो जाता है। जिसके हाथों में हीरे-जवाहरात आ गये, वह कंकड़-पत्थर नहीं बीनता। लेकिन तुम सोचते हो कि कंकड़-पत्थर बीनना बंद कर देने से हीरे-जवाहरात हाथ में आ जायेंगे, तो तुम बड़ी गलती में पड़े हो। कंकड़-पत्थर न बीनने से केवल कंकड़-पत्थर न हाथ में रहेंगे; हीरे-जवाहरातों के आने का क्या संबंध है? तुमसे कोई कहता है : धन छोड़ दो तो ज्ञान उपलब्ध हो जायेगा। जैसे कि धन ज्ञान को रोक सकता है! धन की सामर्थ्य क्या? कोई कहता है : परिवार, बच्चे, पत्नी-पति को छोड़ दो तो परमात्मा उपलब्ध
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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