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________________ कहीं कुछ गठबंधन बाकी रह गया है। तो पहली तो बात यह है कि पुराने को ठीक से देख लो, ताकि पुराने से संबंध छूट जाए। तुम पुराने को पकड़े पकड़े नये का स्वागत करना चाहोगे, नहीं हो पाएगा। पुराना तुम्हें डराका क्योंकि पुराने का न्यस्त स्वार्थ है कि नये को न आने दिया जाए, अन्यथा पुराना निकाल दिया जाएगा। तो पुराना तो नये के विरोध में है। और अगर तुम पुराने से अभी भी ऊब नहीं गये हो, थक नहीं गये हो, अगर -तुमने पुराने की निस्सारता नहीं देख ली है तो वह तुम्हें नये को स्वीकार न करने देगा। मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं कि हमें ध्यान सीखना है, ध्यान करना है। वैसे हम बीस वर्ष से ध्यान कर रहे हैं। मैं उनसे पूछता हूं, बीस वर्ष से ध्यान कर रहे हो, कुछ मिला? वे कहते हैं, ही काफी शांति मिली, काफी सुख मिला। मैं उनके चेहरे को देखता हूं, वहा न कोई सुख है न कोई शांति है। उनके भीतर देखता हूं, वहा मरुस्थल है। कहीं हरियाली नहीं है, कोई मरूद्यान नहीं है। कोई अर बजते हुए नहीं सुनाई पड़ते फिर भी मैं उनसे कहता हूं कि 'फिर से सोच कर कहें। जो करते रहे हैं, अगर उससे शांति और आनंद मिल रहा है तो मेरे पास क्यों आए? उसे जारी रखें। मैं तुम्हारे शांति, आनंद को नहीं तोडूगा, विध्न नहीं डालूंगा। मैं तुम्हारा दुश्मन थोड़े ही हूं।' तब वे कहते हैं कि 'नहीं, ऐसा कुछ खास नहीं मिल रहा है। बस ऐसा ही है, मतलब ज्यादा अशांति नहीं है।' अब वे यह नहीं कहते कि शांति है, अब वे कहते हैं, ज्यादा अशांति नहीं है। मैं उनसे कहता हूं, तब भी कुछ हो तो रहा है। और यह तो लंबी प्रक्रिया है। बीस वर्ष कुछ बहुत वक्त नहीं, बीस जन्मों में भी हो जाए तो बहु ता आप ठीक रास्ते पर चल पड़े हैं, अब क्यों मुझे और परेशान करते हैं! चलते रहें!' तब उनको लगता है कि अगर उन्होंने स्पष्ट बात नहीं कही तो मुझसे संबंध न बनेगा। वे कहते हैं कि अब आप जोर ही डालते हैं तो साफ ही बात कह देते हैं कि कुछ नहीं हुआ 'तो इतनी देर क्यों खराब की?' । मनुष्य का मन यह भी मानने को राजी नहीं होता कि जो काम मैं बीस वर्ष से कर रहा था, उससे कुछ नहीं हुआ| इससे अहंकार को चोट लगती है: 'तो इसका मतलब कि बीस साल मैं मूरख, बीस साल मैं नासमझ था?' यह तो मानना पड़ेगा न! तो अहंकार यह मानने को कभी राजी नहीं होता कि मैंने जो किया वह व्यर्थ गया। वह कहता है कि नहीं, कुछ-कुछ तो हो रहा है। हो भी नहीं रहा है, अगर हो रहा होता तो फिर नये की कोई जरूरत नहीं। अगर पुराने में सार है तो नये की जरूरत क्या है? कोई नये को लेकर क्या करोगे? सार असली बात है। तो पहली बात तो यह देख लेना जरूरी है कि पुराने में सार है? अहंकार को बीच में मत आने देना। साफ-साफ देख लेना। तुम हिंदू हो, हिंदू होने से कुछ मिला? मुसलमान हो, मुसलमान होने से कुछ मिला? जैन हो, जैन होने से कुछ मिला? अभी चार दिन पहले एक महिला ने आकर कहा...... यूरोप से आयी है और कहा कि मैं तो जीसस की अनुयायी हूं और जीसस के अतिरिक्त मेरा कोई और गुरु हो नहीं सकता मैंने कहा: 'बिलकुल
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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