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________________ का आयोजन किया। संगीतज्ञ आए। जैसे शास्त्रीय संगीतज्ञों की आदत होती है, तबला ठोंकने लगे, वीणा कसने लगे। जब तक वे इंतजाम कर रहे थे, साज -सामान बिठा रहे थे, नवाब ने वाइसराय से पूछा:' आपको कैसा संगीत प्रिय है?' वाइसराय ने सौजन्यतावश सोच कर कि यही संगीत हो रहा ब इसमें...... उसने कहा, यही संगीत प्रिय है। उसे कुछ पता भी नहीं था कि संगीत में अब उत्तर क्या दे भू: उसने कहा कि यही संगीत प्रिय है। नवाब ने कहा:'तो फिर यही चलने दो।' तीन घंटे तक यही चला। तबला कसा जा रहा, वीणा कसी जा रही और वाइसराय सौजन्यतावश सुन रहा है। और नवाब अपना सिर ठोक रहा है कि अब क्या करो। इसको यही पसंद है तो यही चलने दो। रवींद्रनाथ ने कहा' अभी तो मैं अपना साज-सामान बिठा पाया था और तू मुझे वापस बुलाने लगा! गीत गाने की कोशिश की थी, अभी गीत गया कहां!' कोई महाकवि कभी नहीं गा पाया। कोई महापुरुष कभी नहीं कह पाया, जो कहना था। कुछ न कुछ छूट जाता है। कुछ न कुछ बात अधूरी रह जाती है। कारण है। कारण ऐसा है कि जो मिलता है वह तो मिलता है आत्मा के लोक में; फिर उसे मन में लाना बड़ा कठिन हो जाता है। मन बड़ा छोटा है। आत्मा है आकाश जैसी। मन है तुम्हारे घर के आंगन जैसा। इसमें इस विराट आकाश को भर लेना कठिन है, असंभव है। फिर जो मन में भी जो थोड़ा -बहुत आ जाता है, उसको शरीर से बोलना है-फिर और अड़चन आ गई। फिर और क्षुद्र में प्रवेश करना है। नहीं, यह हो नहीं पाता। थोड़ी-बहुत बंदें आ जाती हों बरस जाती हों तुम पर तो बहुत सागर तो घुमड़ता रह जाता है। लेकिन थोड़ी-सी बूंदें भी काफी हैं -सागर का स्मरण दिलाने को। थोड़ी-सी बूंदें भी पर्याप्त हैं बोध के लिए, इशारा तो मिल जाता है। सूरज की एक किरण तुम पकड़ लो तो सूरज की राह तो मिल जाती है उसी किरण के सहारे तुम सरज तक पहुंच सकते हो भाव तो तभी उठते हैं जब उन्हें प्रगट करने का सवाल आता है। अनुभूति के क्षण में न कोई विचार है न कोई भाव है। चौथा प्रश्न : हम बहुत पुराने हो गये हैं जब कभी नये के प्रादुर्भाव का क्षण आता है, हमारे गात शिथिल हो जाते हैं, हाथ में से गांडीव गिरने लगता है और हम भय से कांपने लगते हैं। हम चाहते तो हैं कि नये का जन्म हो, लेकिन भय का अंधकार हमें घेर लेता है और हम किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं। कृपा पूर्वक समझाए कि नये के स्वागत के लिए कैसी चित्त-दशा चाहिए और कैसी दृष्टि? पहली तो बात, पुराने से तुम अभी ऊबे नहीं हो कहीं कुछ रस लगाव बाकी रह गया है,
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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