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________________ बुद्ध ने खुद घोषणा की। तुम्हारे कहने से थोड़े ही बुद्ध भगवान हैं। तुम्हारे कहने से थोड़े ही कृष्ण भगवान हैं। दूसरे के कहने से तो कोई भगवान हो भी कैसे सकता है? यह कोई दूसरों का निर्णय थोड़े ही है। यह तो स्वात रूप से निज - घोषणा है। ऐसा मेरा अनुभव है। इसमें तुम्हारी गवाही की जरूरत नहीं। तुम्हारे वोट की जरूरत नहीं कि तुम वोट दो कि यह आदमी भगवान है या नहीं। उसके लिए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्रियों को तुम तय करो। भगवान तो एक स्व-स्फुरण है, एक आत्मप्रतीति है । तुम्हें भी जब होगी तब तुम्हें ही होगी| किसी के कहने से थोड़े ही तुम भगवान हो जाओगे। अंधे, जिनको अपना ही पता नहीं है, वे अगर तुम्हें भगवान भी कहें तो इससे थोड़े ही तुम भगवान हो जाओगे। उनकी समझ उतनी ही होगी जितनी उनकी समझ है। एक दिन पत्नी मुल्ला नसरुद्दीन पर बहुत नाराज हो गई। नाराज होकर उसके ऊपर झपटी, तो मुल्ला भाग कर खाट के नीचे घुस गया। पत्नी चीख कर बोली: 'कायर निकल बाहर!' मुल्ला ने कहा: ' क्यों निकलूं बाहर ? मैं इस घर का स्वामी हूं मेरी जहां मर्जी होगी वहीं बैठूंगा।' यह किस भांति का स्वामित्व हुआ खाट के नीचे छिपे बैठे हैं और कह रहे हैं: 'जहां मर्जी होगी वहां बैठेंगे! घर का स्वामी कौन है?" तुम्हें अपने ही स्वामित्व का पता नहीं है, तुम मेरा निर्णय करोगे? तुम अपना ही कर लो, उतना ही काफी है। नहीं, तुम्हारे कहने से भगवान नहीं हूं न हो सकता हूंं यह मेरी उदघोषणा है। इसे दुनिया में कोई भी स्वीकार न करे, कोई फर्क नहीं पड़ता, मेरी उदघोषणा फिर भी खड़ी रहेगी। क्योंकि यह किसी के सहारे पर नहीं खड़ी है। मैं अकेला ही कहूं एक भी व्यक्ति साथ देने को न हो तो भी यह उदघोषणा खड़ी रहेगी। तुमसे सहारा मांगता नहीं, क्योंकि तुमसे सहारा मांगा तो तुमसे डरूंगा। कल तुम सहारा खींच लो तो फिर? नहीं, तुम मेरी बैसाखी नहीं हो। मैं अपने पैरों पर खड़ा हूं। यह मेरा निजी वक्तव्य है। सही हो, गलत हो - वक्तव्य मेरा है और एकांतरूपेण निजी है। अब यह बड़े मजे की बात है: जब मैं तुमसे कहता था, तुम्हारे भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं तो तुममें से एक ने भी आकर मुझसे न पूछा कि हम परमात्मा नहीं हैं और प्रणाम करते हैं परमात्मा को ? नहीं, तुमने बिलकुल स्वीकार किया। जब मैंने घोषणा की कि मैं परमात्मा हूं, तब बहुत पत्र मेरे पास आने लगे, बहुत लोग आने लगे कि यह आप कैसे कहते हैं? ये वे ही लोग थे। इनके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता था तब इन्होंने कभी संदेह न उठाया और जब मैंने अपने भीतर बैठे परमात्मा की घोषणा की, तो इन्होंने संदेह उठाना शुरू कर दिया। यह घोषणा कि मैं भगवान हूं वस्तुत तुम्हारे लिए भी तुम अपने अहंकार के जाल को देखोगे? तुम्हारा अहंकार तुम्हें किस भांति ग्रसे हुए है द्वार है कि तुम भी हिम्मत जुटाओ लिए स्मृति का एक उपाय है तो तुम भी हो सकते हो। तुम भी छलांग लो। यह तुम्हारे लिए अनुस्मरण है। यह तुम्हारे हड्डी-मांस-मज्जा में कोई व्यक्ति अगर परमात्मा हो सकता है
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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