SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदमी अपने ही हिसाब से समझता है। शहर में नौकरी कर रहे अपने लड़के का हाल-चाल देखने चौधरी गांव से आए। बड़े सवेरे पुत्रवधू ने पक्के गाने का अभ्यास शुरू किया । अत्यंत करुण स्वर में वह गा रही थी: 'पनियां भरन कैसे जाऊं ? पनियां भरन कैसे जाऊं?' शास्त्रीय संगीत तो शास्त्रीय संगीत है; उसमें तो एक ही पंक्ति दोहराए चले जाओ: पनियां भरन कैसे जाऊं। आधे घंटे तक यही सुनते रहने के बाद बगल के कमरे से चौधरी उबल पड़े और चिल्लाए :'क्यों रे बचुआ, क्यों सता रहा है बहू को? यहां शहर में पानी भरना क्या शोभा देगा उसे? जा, आज ही कहारिन का इंतजाम कर ।' शास्त्रीय संगीत-'पनियां भरन कैसे जाऊं - लेकिन चौधरी की बुद्धि तो शास्त्रीय नहीं है। समझे कि बचुआ, उनका लड़का, बहू को सता रहा है- कह रहा है, चल पानी भरने। वह बेचारी आधे घंटे से कह रही है, पनियां भरन कैसे जाऊं ! और बंबई जैसा शहर, यहां जाएगी भी कहां पानी भरने ! गांव की बात और समझ तो अपनी- अपनी है। मैं अपनी समझ से कहता था, तुम अपनी समझ से समझते थे। फिर वर्षों तक कहने के बाद मैंने देखा कि मेरे कहने से कुछ अंतर नहीं पड़ता। वे प्रणाम व्यर्थ चले जाते हैं, तुम तक पहुंचते नहीं तुम अभी सोए हो। मैं तो फूल चढ़ा आता हूं, लेकिन तुम्हारी नींद में कहीं खो जाते हैं। तुम करवट भी नहीं लेते। उल्टे, मेरे फूल तुम्हारी नींद के लिए और शामक दवा बन जाते हैं। मैं कह देता हूं तुम परमात्मा हो तुम बड़े प्रफुल्लित होते हो। जागते नहीं । अगर तुम समझदार होते तो तुम्हें चोट पडती, तुम रोते- जब मैंने कहा था कि मैं तुम्हारे भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं। तो तुम्हारी आंखों में आंसू झरते, तुम रोते! तुम कहते कि नहीं, ऐसा मत कहो, मैं पापी हूं। लेकिन तुम में से एक ने भी यह न कहा। मैं वर्षों तक कहता रहा । गाव-गांव घूम कर कहता रहा। किसी ने मुझसे आ कर न कहा कि 'नहीं, आप ऐसा न कहें, मैं पापी हूं! मुझे परमात्मा न कहें।' कोई रोया नहीं। लौग मुझसे बार-बार कहते थे कि हृदय गदगद हो जाता जब आप ऐसा कहते हैं। यह चोट, मेरी तरफ से तो चोट थी, तुम समझे कि तुम्हारी पीठ सहला रहा हूं मेरी तरफ से तो चोट थी कि तुम थोड़े जागो कि परमात्मा होकर और तुम क्या हो गए हो? क्या कर रहे हो? कहां भटके हो ? लेकिन उस चोट का तो कोई परिणाम नहीं होता था। तुम गदगद होते थे, उल्टा तुम्हारा अहंकार भरता था। परमात्मा की झलक तो अब भी वैसी ही है। उसके खोने का कोई उपाय नहीं। लेकिन देखा, औषधि तुम पर काम नहीं करती, जहर बन जाती है; रोक दी। 'या कि आपने वैसा कहना इसलिए बंद कर दिया कि लोग आपको भगवान कहने लगे?' किसी ने मुझे भगवान कहा नहीं, मैंने ही घोषणा की। तुम कहोगे भी कैसे ? तुम्हें अपने भीतर का भगवान नहीं दिखता, मेरे भीतर का कैसे दिखेगा? यह भ्रांति भी छोड़ दो कि तुम मुझे भगवान कहते हो। जिसे अपने भीतर का नहीं दिखा उसे दूसरे के भीतर का कैसे दिखेगा? भगवान की तो मैं ही घोषणा की है। और यह खयाल रखना, तुम्हें कभी किसी में नहीं दिखा। कृष्ण ने खुद घोषणा की,
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy