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________________ हो, तो तुमने दस रुपए का त्याग कर दिया; लेकिन तुम उसको त्याग नहीं कहते, क्योंकि तुम कहते हो : 'दस रुपए का छोड़ा, छोड़ा क्या? फिल्म देखी ! ' तुमने संसार छोड़ा और स्वर्ग देखने की कामना रखी तो तुम कुछ भिन्न बात नहीं कर रहे सौदा है यह, यह त्याग नहीं है। त्याग तो तभी संभव है, जब तुम छोड़ने - पकड़ने दोनों को छोड़ कर अपने में स्थित हो गए। तुमने कहा: मैं तो बस 'मैं हूं न कुछ पकडूगा न कुछ छोडूंगा; जो होगा, होने दूंगा; मैं जैसा हूं, प्रसन्न, मैं जैसा हूं प्रमुदित मैं जैसा हूं तटस्थ कूटस्थ। 'जैसे कर्म का अनुष्ठान अज्ञान से है, वैसे ही कर्म का त्याग भी अज्ञान से है । ' सुनो इस सूत्र को ! ' जैसे कर्म का अनुष्ठान अज्ञान से है, वैसे ही त्याग का अनुष्ठान भी अज्ञान से है। इस तत्व को भलीभांति जान कर मैं कर्म-अकर्म से मुक्त हुआ अपने में स्थित हूं' न कुछ करता न कुछ छोड़ता । परमात्मा जो कर रहा है, करे। मैं तो सिर्फ द्रष्टा हूं देखता यथा कर्मानुष्ठानं अज्ञानात्.. - जैसे अज्ञान से खयाल होता है बुरे करने का तथा उपरमः । - ऐसे ही त्याग करने का भाव भी अज्ञान से ही उठता है। करने का भाव ही अज्ञान से उठता है। कर्ता का भाव ही अज्ञान से उठता है। .I इदं सम्यक् बुद्धवा.. - ऐसा सम्यक रूप से जाग कर मैंने देखा । इदं सम्यक् बुद्धवा.. ......│ - ऐसा मैं जागा और मैंने देखा । अहं एवं आस्थितः । - इसलिए उसी क्षण से अपने में स्थित हो गया हूं। अब न मुझे कुछ करणीय है, न कुछ अकरणीय है; न कुछ कर्तव्य है, न कुछ अकर्तव्य है। अगर ऐसा न हुआ, तो तुम्हारी जो भ्रांति भोग में थी, पकड़ में थी, संसार में थी, उसी भांति का नए-नए रूपों में, नए-नए ढंग में तुम फिर-फिर आविष्कार करते रहोगे। मुल्ला नसरुद्दीन आदमी तो झक्की है। कोई न कोई बीमारी लेकर अस्पताल पहुंच जाता है| अस्पताल के डॉक्टर भी उससे परेशान हैं। एक बार उसकी छाती में दर्द हुआ जांच के लिए अस्पताल गया। डॉक्टरों ने भली प्रकार खोजबीन की, फिर भी मुल्ला को तसल्ली न हुई विशेषज्ञ ने उन्हें आराम करने के लिए कहा तो वह चिल्लाया: पहले मेरा एक्स-रे लिया जाए। एक्स-रे की रिपोर्ट भी बिलकुल ठीक थी। खून वगैरह की जांच भी उसने करवाई। सभी प्रकार की जांच हो जाने पर भी मुल्ला शांत
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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