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________________ उससे नाता जोडू रे ! अंगड - खंगड मोह सभी से क्या बांधू क्या छोडूं रे! क्या लादूं क्या छोडूं रे! लोग हैं, जो इसी चितना में जीवन बिताते हैं : क्या छोड़े? क्या पकड़े? कुछ जनक कहते हैं : न पकड़ो, न छोड़ो। क्योंकि दोनों में ही पकड़ है। जब तुम कुछ छोड़ते हो, तब भी तुम कुछ पकड़ने के लिए ही छोड़ते हो। कोई कहता है, धन छोड़ेंगे, तो स्वर्ग मिलेगा। यह तो छोड़ना एक तरफ है, पकड़ना दूसरी तरफ हो गया। यह तो लोभ का ही फैलाव हुआ। यह तो गणित पुराना ही रहा; इसमें कुछ नवीन नहीं है। क्या छोड़े, क्या पकड़े! जनक कहते हैं: न छोड़ो, न पकड़ो - जागो ! अचुनाव! कृष्णमूर्ति जिसे कहते हैं : च्चायसलेस अवेयरनेस! निर्विकल्प बोध ! न यह पकड़ता हूं, न यह छोड़ता हूं। छोड़ता - पकड़ता ही नहीं । 'चित्त का स्वीकार और वर्जन है । ' दोनों व्यर्थ! 'उन सबसे उत्पन्न हुए अपने विकल्प को देख कर मैं इन सबसे मुक्त हुआ अपने में स्थित हूं।' छोड़ने - पकड़ने में बड़ी चालबाजी है। सुना है मैंने, मुल्ला नसरुद्दीन एक शराब के अड्डे पर रोज शराब पीने जाता था, और दो गिलास आर्डर देता। शराब आने पर वह दोनों हाथों में गिलास ले कर चीयर्स करता और एक के बाद दूसरे गिलास से घूंट भर-भर कर पीता। एक दिन बैरे ने एक राज पूछा कि मामला क्या है? आप सदा दो ही गिलास क्यों बुलवाते हैं? तो उसने बताया: एक गिलास मेरा है और एक मेरे दोस्त का। दोस्त की याद में पीता हूं एक गिलास और एक गिलास खुद पीता हूं। लेकिन एक दिन जब उसने एक ही गिलास का आर्डर दिया, तो बैरे ने फिर पूछा कि नसरुद्दीन, मामला क्या है? आज आप एक ही गिलास ले कर पी रहे हैं? दोस्त की याददाश्त भूल गई ? नसरुद्दीन ने कहा : कभी नहीं, दोस्त को कैसे भूल सकता हूं मैंने शराब पीना छोड़ दी है, यह तो दोस्त की ही याद में पी रहा हूं। छोड़ो, पकड़ो-बहुत फर्क पड़ता नहीं, तुम आदमी वही के वही रहते हो! अब खुद शराब पीनी छोड़ दी तो दोस्त की याद में पी रहे हैं! आदमी बहुत चालबाज है। और गहरी से गहरी चालबाजी यह है कि तुम कहते हो : धन छोड़ दें, इससे परम धन मिलेगा ? तुम कहते हो : पद छोड़ दें, इससे परम पद मिलेगा ? तुम कहते हो : सब छोड़ दें इस संसार का, लेकिन मोक्ष मिलेगा ? स्वर्ग मिलेगा ? देखो, मिलने की बात तो कायम ही है। तुम सौदा कर रहे हो, छोड़ कुछ भी नहीं रहे हो । यह कोई छोड़ना हुआ? अगर यह छोड़ना है, तो तुम फिल्म देखने जाते हो, दस रुपए की टिकट खरीदते
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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