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________________ में फिर खंड हो जाएगा। फिर आधी आत्मा हो जाएगी, जो देख रही, और जो दिखाई पड़ रही, वह अनात्मा हो जाएगी। अनात्मा का अर्थ ही यह कि जिसे हम देख लेते हैं, वह पराया, वह विषय हो गया। और जिसे हम कभी नहीं देख पाते, जिसे दृश्य बनाने का कोई उपाय नहीं - वही आत्मा है। यह सूत्र ध्यान की पराकाष्ठा का सूत्र है। आत्मा अदृश्य है। तो फिर आत्मा को देखने के जितने उपाय हैं, सब व्यर्थ हैं। जप करो, तप करो- सब व्यर्थ है। यह बात जिसकी समझ में आ गई कि आत्मा को तो देखा नहीं जा सकता क्योंकि आत्मा तो सदा देखनेवाली है, उसके लिए फिर अब कोई साधन न रहे। आत्मन् अदृश्यत्वेन ....... । आत्मा अदृश्य है, ऐसी प्रतीति और अनुभूति के हो जाने से - विक्षेपैकाग्रहृदय.. I - हृदय से सारे विक्षेप विसर्जित हो गए। अब कोई तनाव नहीं है। अब कोई खोज नहीं है। आत्मा की खोज करने की भी खोज नहीं है। अब इतनी भी वासना नहीं बची कि आत्मा को जानें, क्योंकि आत्मा को जाना नहीं जा सकता। आत्मा तो जानने का स्रोत है। एवं अहं आस्थितः । और इसलिए मैं अपने में स्थित हो गया हूं क्योंकि अब करने को कुछ बचा ही नहीं| संसार अपने से चल रहा है। मन की धारा अपने से बह रही है, वहां कुछ करने को नहीं है। शायद कोई कहे कि चलो, संसार अपने से बह रहा है, मन की धारा अपने से बह रही, कुछ करने को नहीं, परमात्मा इनका कर्ता है - लेकिन तुम अपने को तो खोजो!' तो उस खोज से फिर नया तनाव पैदा होगा, फिर नई वासना, नई इच्छा ! फिर नया संसार । जनक कहते हैं, वह भी अब सवाल नहीं है, खोजना किसको है? मैं तो खोजने वाला हूं तो खोजना किसको है? मैं शुद्ध - बुद्ध, चिन्मात्र ऐसा जान कर स्थित हो गया हूं। ऐसा जानने में ही स्थिति आ गई है। ऐसा जानने के कारण ही सब अथिरता चली गई, थिरता बन गई है। अंधेरों पली है यह धरती कि जिसमें दिवस पर भी छाई हुई यामिनी है मेरा शरीर धरती निवासी है तो क्या? मेरी आत्मा तो गगन-गामिनी है ! शरीर होगा धरती पर आत्मा तो गगन - गामिनी है। आत्मा तो गगन है, आत्मा तो आकाश जैसी है - असीम ! जनक कहते हैं: मैं इस बोध में ही स्थित हो गया हूं। चाहे सारा जीवन गुजरे जहरीलों के संग कों पर तो चढ़ न सकेगा सोहबते - बद का रंग
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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