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________________ अपूर्व हैं, मेरी बड़ी साधारण! वह तो ऐसा हुआ जैसे सोने में मिट्टी लगा दी, सुगंध में दुर्गंध जोड़ दी । जब मुझमें समझ आई तो फिर मैंने यह काम बंद कर दिया। कभी कविता पूरी उतरी तो उतरी; कभी अधूरी उतरी तो अधूरी उतरी। कभी ऐसा हो गया कि आधी अभी उतरी और आधी साल भर बाद उतरी, तब पूरी हुई तो मैं सिर्फ प्रतीक्षा करता रहा हूं। मेरा किया इसमें कुछ भी नहीं है। जिसने लिखवाई हैं, उसी से तुम बात कर लेना । एक दूसरे महाकवि इलियट से किसी ने पूछा कि तुम्हारी इस कविता का अर्थ क्या है? मैं शिक्षक हूं विश्वविद्यालय में और विद्यार्थियों को पढ़ाता हूं और यह कविता मेरा कचूमर निकाल देती है। यह कविता जब पढ़ाने का समय आता है, मेरे हाथ-पैर कंपने लगते हैं। इसका अर्थ क्या है? इलियट ने कहा कि दो आदमियों को इसका अर्थ मालूम था, अब केवल एक को ही मालूम है। शिक्षक खुश हुआ उसने कहा कि चलो, कम से कम तुमको तो मालूम है। उसने कहा: मैंने यह कहा नहीं। दो को मालूम था - परमात्मा को और मुझे। मैं तो भूल - भाल गया । अब तो वही जाने | जब उसने गुनगुनाई थी, तब तो मुझे भी पता था । तब तो मैं भरा - भरा था। तब तो जैसे वर्षा आई थी और बाढ़ आ गई थी। मेरा रोआ - रोआ जानता था कि अर्थ क्या है। वह बौद्धिक अर्थ न था। मेरी श्वास-श्वास पहचानती थी कि अर्थ क्या है। अर्थ मुझमें भरा था। अब वर्षों बीत गए, मैं तो बहुत बहा और बदल गया। अब तो सिर्फ परमात्मा जानता है। तुम उसी से प्रार्थना करना। शायद प्रार्थना की किसी घड़ी में जिसने मुझे कविता दी थी, वही अर्थ भी तुम्हें खोल दे । महाकाव्य अवतरण है। तो महाकवि के जीवन में कोई तनाव नहीं होता। रवींद्रनाथ के चेहरे पर तुम्हें जो प्रसाद दिखाई पड़ता है, वह प्रसाद इसीलिए है। उनकी वाणी में जो उपनिषदों की गंध है वह इसीलिए है । उनको कवि कहना ठीक नहीं- वें ऋषि हैं। जो उनसे आया है वह उनका नहीं है - कोई और गाया है। किसी और ने वीणा के तार छेड़े हैं। ज्यादा से ज्यादा वे उपकरण हैं, वीणा लेकिन तार किसी और ने छेड़े हैं; अंगुलियां किसी और अज्ञात की उन पर गंजी हैं। तनाव-रहित प्रयास का अर्थ होता है, तुम्हें अब कोई फल का विचार नहीं है। जो इस क्षण हो रहा है, तुम परिपूर्ण रूप से उसे कर रहे हो। परमात्मा पूरा करवाना चाहेगा, पूरा करवा लेगा; अधूरा तो अधूरा। फल आएगा तो ठीक; न आएगा तो ठीक। यह तुम्हारी चिंता नहीं है। फलाकांक्षा–रहित जो कृत्य है उसमें तनाव चला जाता है। तनाव गया, कर्ता गया, कर्ता गया, अहंकार गिरा। भाग्य का ऐसा अर्थ है कि भगवान कर रहा है। तो इसे मैं तुम्हारी कसौटी के लिए कह दूं कि कर्म तो जारी रहे और कर्ता का भाव संगृहीत न हो तो समझना कि अष्टावक्र को तुमने ठीक से समझा। कर्म ही बंद हो जाए और कर्ता का भाव तो बना ही रहे, तो समझ लेना कि तुम चूक गए। और दूसरी बात ज्यादा आसान है, पहली बात बहुत कठिन है। मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं कि जब वही कर रहा है तो हम करें ही क्यों? थोड़ा सोचो,
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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