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________________ हैं! पढ़ो! मगर पढ़ने से सत्य मिल जायेगा, इस भांति में मत पड़ना। पढ़ने से तो प्यास मिल जाये तो काफी है; सत्य को खोजने की आकांक्षा बलवती हो जाये तो काफी है। सदगुरुओं का सत्संग करो। उससे सत्य नहीं मिल जायेगा, लेकिन सदगुरुओं के सत्संग में शायद सत्य को खोजने की आकांक्षा प्रबल जाये, प्रज्वलित हो जाये, लपट बन जाये। सत्य तो भीतर ही मिलेगा। सदगुरु वही है जो तुम्हें तुम्हारे भीतर पहुंचा दे। और शास्त्र वही है जो तुम्हें तुमसे ही जुड़ा दे। 'विषय का द्वेषी विरक्त, विषय का लोभी रागी; पर जो ग्रहण और त्याग दोनों से रहित है, वह न विरक्त है और न रागवान है।' है: वही है सत्य को उपलब्ध। वही वीतराग है। इन प्रवचनों पर खूब मनन करना, ध्यान करना। इन वचनों का सार कबीर के इस वचन में जाको राखे साइयां, मार सके न कोय। बाल न बांका कर सके जो जग वैरी होय ।। छोड़ दो सब परमात्मा पर! जाको राखे साइयां! तुमने जब नहीं छोड़ा है, तब भी वही रखवाला है, तुम छोड़ दो, तब भी वही रखवाला है। फर्क इतना ही पड़ेगा कि तुम छोड़ दोगे तो तुम्हारी चिंता मिट जायेगी। तुम तो पलक भी न झंपो अपनी तरफ से तुम सुरक्षा भी न करो। तुम आयोजन भी मत करो। तुम तो वह जो करवाये, करो। इसका यह मतलब नहीं कि तुम चादर ओढ़ कर लेट जाओ। अगर वह चादर ओढ़ कर लेटने को कहे तो ठीक। तुम अपनी तरफ से यह मत करना कि तुम कहो कि फिर करना क्या ! मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, समझ गये अष्टावक्र को तो अब करने को तो कुछ भी नहीं है! अगर तुम समझ गये तो करने को तो बहुत है कर्ता होने को कुछ भी नहीं है। अगर नहीं समझे तो तुम ऐसा पूछोगे आ कर कि अब करने को तो कुछ भी नहीं है, तब हम विश्राम करें! तब ध्यान इत्यादि करने से क्या सार है।' तो तुम करने से बचने लगे, तो तुम आलसी हो जाओगे। ये सूत्र शिरोमणियो के लिए हैं। ये सूत्र उनके लिए हैं जो कहते हैं : अब हम कर्ता न रहे। परमात्मा तुमसे बहुत कुछ करवायेगा जब तुम कर्ता न रह जाओगे। फिर करने का मजा और रस और फिर करने में एक उत्सव है, एक नृत्य है। फिर करना ऐसा है जैसा कबीर ने कहा कि मैं तो बांस की पोंगरी हूं! तू गीत गाता है तो मेरे से गात गुजर जाता है तू चुप हो जाता है तो चुप्पी प्रगट होती है अब तो मैं बांस की पोगरी हूं खाली पोंगरी तू जो करवाये! यही कृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं गीता में कि तू बांस की पोगरी हो जा! निमित्त-मात्र! अर्जुन चाहता है, कर्म छोड़ दे और भाग जाये जंगल में, वह आलसी होना चाहता है। और कृष्ण कहते हैं, तू आलसियों का शिरोमणि हो जा, कर्ता- भाव छोड़ दे और कर्म तो परमात्मा करवाये तो होने दे। वही तुझे वृद्ध के मैदान पर ले आया। अगर वही युद्ध करना चाहता है तो होने दे। तू न भी करेगा
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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