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________________ होता है-परिमार्जित, परिष्कृत। सम्राट कुछ करे न भी तो भी जानता यही है कि उसी के किए सारा साम्राज्य चल रहा है। कुछ न भी करे तो भी, वैसी सूक्ष्म धारणा तो बनी ही रहती है! वह माने ही रहता है कि मेरे बिना क्या होगा। जिस दिन मैं न रह जाऊंगा, दुनिया में सूरज अस्त हो जाएगा। तो लोग सोचते हैं, मेरे बाद कौन! कोई भिखारी तो नहीं सोचता ऐसा कि मेरे बाद कौन! लेकिन जिनके पास पद है, शक्ति है, वे सोचते हैं, मेरे बाद कौन! क्यों? तुम्हें इसकी चिंता क्या है? तुम्हारे बाद जो होंगे वे फिक्र कर लेंगे। नहीं, लेकिन वह सोचता है कि मैं कुछ इंतजाम कर जाऊं। मेरे बाद के लिए भी इंतजाम मुझे करना है। व्यवस्था मुझे जुटानी है। वसीयत कर जाऊं। गरीब तो कोई वसीयत नहीं करता, वसीयत करने को भी कुछ नहीं है। अमीर वसीयत करता है-कौन सम्हालेगा! जनक में एक सूक्ष्म अस्मिता रही होगी-कहीं बहुत गहरे में पड़ी रही होगी। चिकित्सक की आंख से तो तुम बच नहीं सकते, क्योंकि चिकित्सक की आंख तो एक्स-रे है; वह तो दूर तक देखती है। गुरु की आंख से तुम बच नहीं सकते। वह तो तुम्हारी गहनतम चेतना में प्रवेश करती है। वह तो तुम्हारे अचेतन को उघाड़ती है। वह तो वहां तक देखती है जहां जन्मों-जन्मों के संचित संस्कार पड़े हैं जिनको तुम भूल ही गए हो, जिनकी तुम्हें याद भी नहीं रही है; जहां बीज पड़े हैं, जो कभी फले नहीं, जो कभी फूले नहीं, जिनमें कभी अंकर नहीं आए, लेकिन कभी भी सुसमय पा कर, ठीक मौसम में वर्षा हो जाने पर अंकुरित हो जाएंगे। तो जब अष्टावक्र ने जनक को ऐसा कहा, तो जनक को ऐसा कहा है, इसे याद रखो। ये वक्तव्य निजी हैं और व्यक्तियों को दिये गए हैं। एक गुरु और एक शिष्य के बीच जो घटा है इसे तुम सार्वजनीन सत्य मत मान लेना। यह सबकी औषधि नहीं है। यह कोई रामबाण औषधि नहीं है कि कोई भी बीमारी हो, ले लेना और ठीक हो जाओगे। तुम्हारी बीमारी पर निर्भर करेगा। इसलिए कभी-कभी उल्टा भी हो जाता है। अक्सर उल्टा हो जाता है। अब अष्टावक्र की गीता, अक्सर जो आलसी हों, उनको जंचेगी। वह उल्टा हो गया मामला। जो अकर्मण्य हैं उनको जंचेगी। वे कहेंगे, बिलकुल सत्य! यही तो हम जानते रहे सदा से। तब बजाय जीवन में प्रभु का प्रकाश फैले, उनके जीवन में नर्क का अंधकार फैल जाएगा। ___यही तो भारत में हुआ। भाग्य का अपूर्व सिद्धात भारत को दीन और दरिद्र कर गया। लोग काहिल हो गए, लोग सुस्त हो गए। उन्होंने कहा, जो भगवान करेगा, गुलामी दे तो, कोई लूट-पाट ले तो ठीक; भूखा रखे, अकाल पड़े, तो ठीक। लोग बिलकुल ऐसे दीन हो कर बैठ गए कि हमारे किए तो कुछ होगा नहीं। ये सूत्र तुम्हें अकर्मण्य बनाने को नहीं हैं। ये सूत्र तुम्हें अकर्ता बनाने को हैं, अकर्मण्य बनाने को नहीं हैं। और अकर्ता का अर्थ अकर्मण्यता नहीं होता। अकर्ता तो बड़ा कर्मण्य होता है। सिर्फ कर्म उसका अब अपना नहीं होता है; अब ईश्वर समर्पित होता है। करता तो वह बहुत है, लेकिन करने का श्रेय नहीं लेता। करता सब है और कर्ता नहीं बनता। और यह नहीं कहता कि मैं करने वाला हूं। करता सब है और सब प्रभु-चरणों में समर्पित कर देता है। कहता है, तुमने करवाया, किया!
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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