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________________ हम शांत होने आये थे, आनंदित होने आये थे और ये कह रहे हैं कि मिट जाओ! तो फिर फायदा क्या ! जब मिट ही गये तो फिर कौन शांत होगा! तो फिर कौन आनंदित होगा! यह तुम्हारा प्रश्न तर्कपूर्ण है। इसके पीछे तर्क मेरी समझ में आता है, बात साफ है। तुम पूछते हो कि जब हमी न बचे तो शांत कौन होगा! और मैं तुमसे कह रहा हूं कि तुम्हारे न बचने का नाम ही शांति है। कोई शांत होता नहीं और कोई आनंदित नहीं होता। आनंदित होना और किसी का होना दो चीजें नहीं हैं। जब तुम नहीं होते तो आनंद होता है। जब तुम नहीं हो तो शांति होती है। अगर तुम्हारी यह जिद हो कि मैं तो शांति ऐसी चाहता हूं कि मैं भी रहूं और शांति हो तो तुम अशांत रहोगे तो तुम कभी शांत नहीं हो सकते। अगर तुम्हारी यह जिद है कि मैं तो रहते हुए आनंद चाहता हूं तो फिर तुम कभी आनंदित न हो सकोगे। फिर तुम्हें दुख से राजी रहना चाहिए। फिर तुम आनंद की तलाश बंद कर दो। तुम अगर यह कहते हो कि मैं तो खुद रहूं और परमात्मा का साक्षात्कार करूं तो तुम इस भ्रांति में पड़ो मत, यह जाल तुम्हारे लिए नहीं, तुमसे न हो सकेगा। प्रेम गली अति सीकरी तामें दो न समाय! या तो तुम बचोगे या परमात्मा। हेरत हेरत हे सखी रह्या कबीर हेराई। खोजते-खोजते कबीर खो गया। कबीर ने कहा : यह भी खूब मजा है! जब तक हम थे, तुम नहीं। अब तुम हो, हम नाहिं। खोजते फिरते थे, रोते फिरते थे गली-कूचे, चिल्लाते फिरते थे-'हे प्रभु कहां हो!' तब तक तुम न थे, हम थे। अब तुम हो, हम नाहिं। यह भी खूब मजा रहा! अब तुम सामने खड़े हो, लेकिन इधर भीतर खोजते हैं तो किसी का पता नहीं चलता। कहां गया यह कबीर! हेरत-हेरत हे सखी रह्या कबीर हेराई। एक ही होगा। इसलिए तुम्हें यह बात अजीब-सी लगेगी, लेकिन मैं कहना चाहता हूं : आज तक किसी व्यक्ति ने व्यक्ति की हैसियत से परमात्मा को नहीं जाना है। आज तक किसी ने परमात्मा साक्षात्कार नहीं किया है। साक्षात्कार कौन करेगा? साक्षात्कार करने वाला ही तो बाधा है। इधर तुम मिटे उधर परमात्मा हुआ। तुम्हारे होने के कारण ही पसात्मा नहीं हो पा रहा है। आखिरी प्रश्न : ऐसा क्यों है कि मेरे पति और स्वजनों को मुझमें प्रगति नहीं दिखती और अभी तक रजनीश के लिए उनके मुंह से गालियां ही गालियां निकलती हैं? क्या इसमें मुझसे कुछ भूल तो नहीं हो रही प्रश्न थोड़ा जटिल है। 'मंजू, ने पूछा है। उसे मैं जानता हूं। पति इसीलिए परेशान है कि प्रगति
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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