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________________ लेने की बात है। यह तो ऐसे ही है जैसे तुमने देखा हो : कुत्ते के मुंह में हड्डी दे दो तो हड्डी को चूसता है और बड़ा रस आता है उसे; लेकिन हड्डी में कुछ रस तो है नहीं, आ कैसे सकता है! हड्डी के कारण उसके मंह के भीतर जबड़े और चमडी कट जाती है, उससे खन बहने लगता है। वह खन का रस उसे आता है। अपना ही खून! लेकिन वह सोचता है, हड्डी से आ रहा है। अब कुत्ते को तुम्हें क्षमा करना पड़ेगा, क्योंकि कुत्ता बेचारा जाने भी कैसे कि कहां से आ रहा है! दिखाई तो उसे कुछ पड़ता नहीं, हड्डी को चूसता है, तभी खून बहने लगता है भीतर। वह प्रसन्न होता है। गले में उतरते खून को देख कर स्वाद लेता है। वह अपना ही खून पी रहा है और घाव पैदा कर रहा है अलग। लेकिन सोचता है, हड्डी से आ रहा है। सूखी हड्डी भी कुत्ता छोड़ने को राजी नहीं होता है। शराब का सुख ऐसा ही है। लेकिन सचाई उसमें थोड़ी है। सचाई इतनी ही है कि थोड़ी देर को तुम अपने को भूल जाते हो। और मैं यह कहना चाहता हूं दुनिया से शराब तब तक न जाएगी जब तक हम और ऊंची शराबें न पैदा कर लें। दुनिया से शराब तब तक न जाएगी जब तक लोग ध्यान की शराब में न उतर जायें। दुनिया से शराब तब तक न जाएगी तब तक परमात्मा की शराब उन्हें उपलब्ध न होने लगे। जब मंदिर मधुशाला जैसे हों तब मधुशालाएं बंद होंगी उसके पहले बंद नहीं हो सकती हैं। लाख उपाय करें सरकारें, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। जो उपाय करते हैं, वे खुद पी रहे हैं। यह बड़े आश्चर्य की बात है। जो बंद करवाना चाहते हैं, 'वे खुद पीते हैं। क्योंकि वे भी बंद करवाने की कोशिश से इतने थक जाते हैं कि फिर विस्मरण तो थोड़ा करना ही पड़े न! राजनीतिज्ञ को भी तो थोड़ा अपने को भूलना पड़ता है। उसकी तकलीफ तो समझो। दिन भर दौड़-धूप, झूठी हंसी, मुंह फैलाये रहता है, अभ्यास करते रहता है, हाथ जोड़े खड़ा है और हजार तरह की गालियां खा रहा है और सड़े टमाटर झेल रहा है और जूते और जूते फेंके जा रहे, और यह सब चल रहा है और इसको वह हाथ जोड़ कर मुस्कुरा रहा है! इसकी भी तो तुम तकलीफ समझी! और कुछ हल नहीं होता दिखता। बड़ी समस्याएं हैं, बड़े वायदे किए हैं। कोई हल नहीं हो सकता है, क्योंकि समस्यायें बड़ी हैं, वायदे भयंकर हैं, हल होने का कोई उपाय नहीं है। उन्हीं वायदों को कर-करके इस पद पर आ गया है। अब कुछ हल होता दिखाई नहीं पड़ता। अब रात -शराब न पीये तो क्या करे! आदमी अपने को भूलना चाहता है। भूलने में ही कहीं सुख है। लेकिन शराब से क्या भूलना? यह कोई भूलना हुआ? यह तो आदमी से नीचे गिर जाना हुआ। और ऊपर की शराब हम सिखाते हैं। तुम जरा अहंकार को विस्मरण करने की कला सीखो। बजाय शराब भीतर डालने के, अहंकार को जरा बाहर उतार कर रखो। थोड़ी-थोड़ी देर, घड़ी आधा घड़ी...... तेईस घंटे अहंकार को दे दो, एक घंटा अहंकार से माफी मांग लो। एक घंटा बिना अहंकार के ना -कुछ हो कर बैठ जाओ। यही ध्यान है। इसी ना -कुछ होने में व्यक्ति धीरे - धीरे अपनी सीमा-रेखा खोता है और निराकार का अवतरण होता है। जहां तुम्हारी सीमा धुंधली होती है वहीं से निराकार प्रवेश करता है। तो आनंद के अनुभव के लिए व्यक्ति का होना बिलकुल भी जरूरी नहीं है, क्योंकि व्यक्ति
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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