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________________ वासनाएं हैं, उन वासनाओं को जगाने, प्रज्वलित करने की कोई जरूरत नहीं। अपना घड़ा भरो और चलो। जल के नीचे बैठी है मिट्टी, बैठी रहने दो। लेकिन हम घड़ा तो भरते नहीं, जीवन के रस से तो घड़ा भरते नहीं; वह जो तलहटी में बैठी मिट्टी है. वासनाओं की, उसी की उधेड़बुन में पड़ जाते हैं। और उसके कारण सारा जल अस्वच्छ हो जाता है। तो अगर जल भरना हो किसी झरने से तो उतर मत जाना झरने में; झरने के बाहर से चुपचाप आहिस्ता से अपना घड़ा भर लेना। झरने में उतर गये, जल पीने योग्य न रह जाएगा। अभी-अभी कैसा स्वच्छ था, स्फटिक मणि जैसा ! उतर गये, उपद्रव हो गया। कर्ता बन गये - उतर गये। साक्षी रहे कि किनारे रहे। भर लो घड़ा। बैठा है कीचड़ पर जल चौंका मत ! घट भर और चल । कृतकृत्य हो जा! बनाया जा सकता है अंधेरा पालतू । यह तुमने देखा, अंधेरे को तुम बंद कर सकते हो कमरे में, लेकिन धूप को नहीं ! बनाया जा सकता है अंधेरा पालतू पर मर जाती है बंद करते ही धूप । जीवन में जो भी श्रेष्ठ है, जो भी सुंदर है, जो भी सत्य है, वह मुक्त ही होता है। उसे बांधा नहीं जा सकता। शास्त्र में बांधा, मर जाता है सत्य । सिद्धात में पिरोया, निकल जाते हैं प्राण । तर्क में डाला, हो गया व्यर्थ। तर्क तो कब है सत्य की। शब्द तो लाश है सत्य की । बनाया जा सकता है अंधेरा पालतू पर मर जाती है बंद करते ही धूप । आंखों में अगर सपने शब्दों में बंद करने की चेष्टा न करो मौन में उघाड़ो ! विचारों में मत उलझो; शून्य में जागो! भरे हुए हो तुम तो तुम कारागृह में ही रहोगे। आंखों को खाली करो। मुक्ति का द्वार अभिन्न अंग है कारा का! यह बड़े मजे की बात है। संसार में ही मुक्ति का द्वार है। होना ही चाहिए। जेलखाने से जब कोई निकलता है तो जिस द्वार से निकलता है वह जेलखाने का ही द्वार होता है। मुक्ति का द्वार अभिन्न अंग है कारा का । वह द्वार मुक्ति का कारा से अलग थोड़े ही है। मोक्ष कहीं संसार से अलग थोड़े ही है। मोक्ष संसार में ही एक द्वार है। तुम साक्षी हो जाओ, द्वार खुल जाता है। तुम कर्ता बने रहो, तुम्हें द्वार दिखाई नहीं पड़ता। तुम दौड़-धूप आपाधापी में लगे रहते हो। 'संसाररूपी समुद्र में एक ही था, एक ही है, एक ही होगा। तेरा बंध और मोक्ष नहीं । तू कृतकृत्य हो कर सुखपूर्वक विचर |
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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