SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 355
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है-और क्या चाहते हो? सूरज की किरणें उसे लातीं, हवाओं के झोंके उसे लाते, फूलों की गंध उसे लाती, पक्षियों की पुकार उसे लाती - सब तरफ से उसने तुम्हें घेरा है, सब तरफ से तुम पर बरस रहा है! सब तरफ से वही तुम्हें स्पर्श कर रहा है। जीवन धन्य है। आभार, फिर आभार ! इस ' आभार' को ही मैं प्रार्थना कहता हूं । प्रार्थना शब्द अच्छा नहीं, उसमें मांगने का भाव है। शायद लोग मांगते रहे, इसलिए हमने धीरे- धीरे प्रभु की आराधना को प्रार्थना कहना शुरू कर दिया, क्योंकि प्रार्थी वहां पहुंचते मांगने वाले भिखमंगे वहां पहुंचते । प्रभु की प्रार्थना वस्तुत धन्यवाद है : इतना दिया है, अकारण दिया है! इस अपरिमित में अपरिमित शांति की अनुभूति और जैसे ही तुम मांगना छोड़ा, आभार तो अपरिमित है। उसका कोई ओर-छोर नहीं | धन्यवाद की कोई सीमा थोड़े ही है ! धन्यवाद कंजूस थोड़े ही होता है। धन्यवाद ही दे रहे हो तो उसमें भी कोई शर्त थोड़े ही बांधनी पड़ती है। धन्यवाद तो बेशर्त है। अपरिमित शांति की अनुभूति अक्षय प्यार का आभास और तुमने आभार दिया और उधर परमात्मा का प्यार तुम्हें अनुभव होना शुरू हुआ। बह तो सदा से रहा था, बिना आभार के तुम अनुभव न कर पाते थे। आभार प्यार को अनुभव कर पाता है। आभार पात्रता है प्यार को अनुभव करने की । समर्पित मत हो त्वचा को ! ऊपर-ऊपर चमड़ी- चमड़ी पर मत जा । रूप-रंग में मत उलझ । स्पर्श कर गहरा । स्पर्श गहरे मात्र इससे भी श्रेष्ठतर मूर्धन्य सुख जल बेड़ियों से कहीं ऊपर यह जो त्वचा का सुख है, यह जो ऊपर-ऊपर थोड़े-से सुख की अनुभूति मिल रही है, इसमें उलझ मत जा। यह तौ खिलौना है। यह तो केवल खबर है कि और पीछे छिपा है, और गहरा छिपा है। ये तो कंकड़-पत्थर हैं, हीरे जल्दी आने को हैं । इन कंकड़-पत्थरों में भी थोड़ी-सी आभास, थोड़ी-सी झलक है। तो उस पूर्ण सुख का तो क्या कहना! अगर तू बढ़ा जाए, चला जाए...। कहीं गहरे ठहर कर आधार, मूलाधार! गहरे उतर, त्वचा में मत ठहर । परिधि पर मत रुक, केंद्र की तरफ चल । जीवन हर नये दिन की निकटता
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy