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________________ दो हजार साल पहले सिर्फ एक विज्ञान था जिसको वे फिलासफी कहते थे! फिर विभाग हुए, फिर साइंस अलग टूटी, फिलासफी और साइंस अलग हो गईं; फिर साइंस अलग टूटी, फिजिक्स और केमिस्ट्री और बायोकेमिस्ट्री और बायोलाजी अलग हो गईं, मेडिकल साइंस अलग हो गई, इंजिनीयरिंग अलग हो गई। फिर उनमें भी टूट होने लगी, तो आर्गेनिक केमिस्ट्री, इनार्गेनिक केमिस्ट्री अलग हो गईं। फिर मेडिकल साइंस हजार टुकड़ों में टूट गई। जल्दी ही ऐसा वक्त आ जाएगा कि बाईं आंख का डाक्टर अलग, दाईं आंख का डाक्टर अलग। विभाजन होते चले जाते हैं। हर चीज का स्पेशियलाईजेशन हो जाता है। फिर उसमें भी शाखाएं - प्रशाखाएं निकल आती हैं। वे पुराने दिन गये जब तुम किसी डाक्टर के पास चले जाते थे, कोई भी बीमारी हो तो वह तुम्हें सहायता दे देता था। वे पुराने दिन गये । अब पूरे आदमी का डाक्टर कोई भी नहीं। अब तो खंड-खंड के डाक्टर हैं। कान खराब तो एक डाक्टर, आंख खराब तो दूसरा डाक्टर, गला खराब तो तीसरा, पेट में कुछ खराबी तो चौथा। और मजा यह है कि तुम एक हो, तुम्हारी आंख, गला, पेट सब जुड़ा है- और डाक्टर सब अलग हैं! इसलिए कभी-कभी ऐसा हो जाता है, पेट का इलाज करवा कर आ गये, आंख खराब हो गई। आंख ठीक करवा ली, कान बिगड़ गए । कान ठीक हो गये, टासिल में खराबी आ गई। टासिल निकलवा लिया, अपेन्दिक्स खड़ी हो गई ! जो लोग आज चिकित्साशास्त्र पर गहरा विचार करते हैं, वे कहते हैं, कि यह तो बड़ा खतरा हो गया। आदमी इकट्ठा है तो चिकित्साशास्त्र भी इकट्ठा होना चाहिए। यह तो खंडों का इलाज हो रहा है। और एक खंड वाले को दूसरे खंडों का कोई पता नहीं है। तो एक खंड वाला जो कर रहा है उसके क्या परिणाम दूसरे खंड पर होंगे, इससे कुछ संबंध नहीं रह गया है। पूरे को जानने वाला कोई बचा नहीं । अब बीमारियों का इलाज हो रहा है, बीमार की कोई चिंता ही नहीं कर रहा है। व्यक्ति की कोई पकड़ नहीं रह गई - अखंड व्यक्ति की । खंड-खंड ! और ये खंड बढ़ते जाते हैं। और इनके बीच कोई जोड़ नहीं है। फिजिक्स एक तरफ जा रही है, केमिस्ट्री दूसरी तरफ जा रही है। और दोनों के जो आत्यंतिक परिणाम हैं उनका संश्लेषण करने वाला भी कोई नहीं है, सिंथीसिस करने वाला भी कोई नहीं है। कोई नहीं जानता कि सब विज्ञानों का अंतिम जोड़ क्या है। जोड़ का पता ही नहीं है । सब अपनी-अपनी शाखा–प्रशाखा पर चलते जाते हैं; उसमें से और नई फुनगियां निकलती आती हैं, उन पर चलते चले जाते हैं। छोटी से छोटी चीज को जानने में पूरा जीवन व्यतीत हो रहा है और समग्र चूका जा रहा है। धर्म की यात्रा बिलकुल विपरीत है। धर्म और विज्ञान में यही फर्क है। विज्ञान खंड करता है, खंडों के उपखंड करता है, उपखंडों के भी उपखंड करता है, और खंड करता चला जाता है। तो विज्ञान पहुंच जाता है परमाणु पर। खंड करते-करते-करते वहां पहुंच जाता है जहां और खंड न हो सकें या अभी न हो सकें, कल हो सकेंगे तो कल की कल देखेंगे। धर्म की यात्रा बिलकुल दूसरी है। धर्म दो खंडों को जोड़ता - जोड़ता चला जाता है- अखंड की तरफ। फिर ब्रह्म बचता है, एक बचता है। कहो आत्मा,
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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