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________________ हैं और जो लहराया है वह लहरों के भीतर छिपा है। वह सभी का आधार है। 'यह वह मैं हूं और यह मैं नहीं हूं ऐसे विभाग को छोड़ दे। सब आत्मा है ऐसा निश्चय करके तू संकल्प-रहित हो कर सुखी हो।' यह मैं हूं वह मैं हूं यह मैं नहीं हूं, वह मैं नहीं हूं -ऐसे विभाग को छोड़ दे। हम जीवन भर विभाग ही बनाते हैं। हमारे जीवन भर की अथक चेष्टा यही होती है कि हम ठीक-ठीक परिभाषा कर दें कि मैं कौन हूं। मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, हमें यह पता नहीं कि हम कौन हैं। कोई रास्ता बताये कि हम जान लें कि हम कौन हैं। क्या जानना चाहते हो? तुम एक परिभाषा चाहते हो, सीमा चाहते हो, जिसके भीतर तुम कह सको : यह मैं हूं! यही हम कोशिश भी कर रहे हैं। सांसारिक ढंग से या धार्मिक ढंग से, हमारी चेष्टा एक ही है कि साफ-साफ प्रगट हो जाए कि मैं कौन हूँ! तुम देखे, जरा किसी को धक्का लग जाए, वह खड़े हो कर कहता है. आपको मालूम नहीं कि मैं कौन हूं! वह क्या कह रहा है? वह यह कह रहा है. 'धक्का मार रहे हो? पता नहीं, मैं कौन हूं? महंगा पड़ेगा यह धक्का! मुश्किल में पड़ जाओगे। क्षमा मांग लो।' उसे भी पता नहीं कि वह कौन है। किसको पता है! नहीं पता है, इसलिए झूठे-झूठे हमने लेबल लगा रखे हैं। कोई कहता है, मैं हिंदू हूं। यह भी कोई होना हुआ पैदा हुए थे तो हिंदू की तरह पैदा न हुए थे। गीता साथ लेकर आए न थे, न कुरान लेकर आए थे, न बाइबिल लेकर आए थे। खाली हाथ चले आए थे। सिर पर भी कुछ लिखा न था कि हिंदू हो, कि मुसलमान हो, कि ईसाई हो। बिलकुल खाली, निपट कोरे कागज की तरह आए थे। किसी और ने लिख दिया है कि हिंदू हो। किसी और ने लिख दिया है कि मुसलमान हो। किसी ने किताब खराब कर दी है तुम्हारी। इस दूसरे की लिखावट को तुम अपना स्वभाव-स्वरूप समझ रहे हो? और जिसने लिख दिया है हिंदू उसको भी पता नहीं है कि वह क्या कर रहा है। उसके बाप-दादे उस पर लिख गये कि हिंदू हो। दूसरों की सुन कर चल रहे हो? अपना अभी कोई अनुभव नहीं है। फिर कोई कहता है, मैं सुंदर। यह भी लिख दिया किसी और ने। किसी ने कहा, सुंदर! पकड़ लिया तमने। अब जिसने कहा संदर, उसकी धारणा है या उसके अपने कारण होंगे। दुनिया में सौंदर्य की अलग-अलग धारणाएं हैं। चीन में एक तरह का चेहरा सुंदर समझा जाता है, हिंदुस्तान में कोई वैसे चेहरे को सुंदर न समझेगा। अफ्रीका में दूसरे ढंग का चेहरा सुंदर समझा जाता है; वैसे चेहरे को अमरीका में कोई सुंदर न समझेगा। और जिसको इंग्लैंड में सुंदर समझते हैं, फ्रीका में लोग उसको बीमार समझते हैं कि ये क्या पीला-सा पड़ गया आदमी! पीत-मुख कहते हैं। यह भी कोई बात हुई यह कोई सौंदर्य हुआ जरा-सी धूप नहीं सह सकता है! यह कोई स्वास्थ्य हुआ सौंदर्य की बड़ी अलग धारणाएं हैं। कौन सुंदर है? किसकी धारणा सच है? कौन कुरूप है? फिर
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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