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________________ को याद नहीं किया? मैं महावीर पर बोल रहा हूं, वे मुल्ला नसरुद्दीन को सुन रहे हैं। मैं मुहम्मद पर बोल रहा हूं वे मुल्ला नसरुद्दीन को सुन रहे हैं। मैं मूसा पर बोल रहा हूं वे मुल्ला नसरुद्दीन को सुन रहे हैं। मैं मनु पर बोल रहा वे मुल्ला नसरुद्दीन को सुन रहे हैं। यह तो ऐसे हुआ कि मैंने भोजन तुम्हारे लिए सजाया और तुम चटनी- चटनी खाते रहे। चटनी स्वादिष्ट है, माना; लेकिन चटनी से पुष्टि न मिलेगी। ठीक था, रोटी के साथ लगा कर खा लेते। इसीलिए चटनी रखी थी कि रोटी तुम्हारे गले के नीचे उतर जाये। चटनी तो बहाना थी, रोटी को गले के नीचे ले जाना था। बिना चटनी के चली जाती तो- अच्छा, नहीं जाती तो चटनी का उपयोग कर लेते। रोटी भूल ही गये, तुम चटनी ही चटनी मांगने लगे। तुम तो धीरे- धीरे ऐसा आदमी भी ऊब जायेगा। क्योंकि वह देखेगा यह आदमी तो रोटी खिलाने पर जोर दे रहा है। तुम चटनी के लिए आये, मेरा जोर रोटी पर है। चटनी का उपयोग भी करता हूं तो सिर्फ रोटी कैसे तुम्हारे गले के भीतर उतर जाये। तुम्हारे आने के कारण तुम जानो मेरा काम मैं जानता हूं कि तुम्हारे गले के नीचे कोई सत्य उतारना है। बाकी सब आयोजन है सत्य को उतारने का। अगर तुम रूखा-सूखा उतारने को राजी हों-सुविधा, सरलता से हो जायेगा। अन्यथा पकवान बनायेंगे, बहाना खोजेंगे; लेकिन डालेंगे तो वही जो डालना है। तो उससे भी ऊब पैदा हो जाती है। फिर जिसने पूछा है. 'समाधि' ने पूछा है। एक वक्त था, मैं सारे देश में घूम रहा था। मेरे बोलने का ढंग दूसरा था। भीड़ से बोल रहा था। भीड़ मेरे साथ किसी तरंग में बंधी हुई नहीं थी । हजार तरह के लोग थे। तल लोगों का स्वभावतः लोगों का तल था। भीड़ से बोलना हो तो भीड़ की तरह बोलना होता है। सारे देश में घूम रहा था। एक गांव में कभी फिर आता साल भर बाद, दो साल बाद उस समय जिन लोगों ने मुझे सुना उनको बातें ज्यादा समझ में आ जाती थीं- उनके तल की थीं। लेकिन मैं किसी और प्रयोजन से घूम रहा था। उनके मनोरंजन के लिए नहीं घूम रहा था। मैं तो इस प्रयोजन से घूम रहा था कि कुछ लोगों को इनमें से चुन लूंगा, खोज लूंगा; द्वार-द्वार दस्तक दे आऊंगा। फिर जो सच में ही यात्रा पर राजी है, वह मेरे पास आयेगा । तब मैं तुम्हारे पास आया था। अब मैं तुम्हारे पास नहीं आता अब तुम्हें मेरे पास आना है। 'समाधि' उन्हीं दिनों में मुझमें उत्सुक हुई थी। उन दिनों जो लोग मुझमें उत्सुक हुए थे उनमें से बहुत से लोग चले गये। जायेंगे ही क्योंकि उनकी उत्सुकता का कारण समाप्त हो गया। तब मैं जो बोल रहा था, वह सनसनीखेज था। अब जो मैं बोल रहा हूं वह अति गंभीर है। तब मैं जो बोल रहा था, वह भीड़ के लिए था; अब जो मैं बोल रहा हूं वह क्लास के लिए है, वह एक विशिष्ट वर्ग के लिए है-संस्कारनिष्ठ । तब जो मैं बोल रहा था, वह कुतूहल जिनको था, उनके लिए भी ठीक था। आज तो उनके लिए बोल रहा हूं जो जिज्ञासा से भरे हैं। और वस्तुत उनके लिए बोल रहा हूं जो मुमुक्षा से भरे हैं। तो फर्क पड़ गया है। तो उन दिनों जो लोग मेरे पास आये थे, उनमें से निन्यानबे प्रतिशत लोग चले गये। मैं जानता ही था कि वे चले जायेंगे। उनके लिए मैं बोला भी न था । वह तो एक प्रतिशत
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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