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________________ रही है। तब उसका सिर ही दिखाई पड़ता है, कुछ और दिखाई पड़ता नहीं । फिल्म तुम्हारे हृदय से निकल जाती है। फिल्मी गाना तुम्हारे हृदय से निकल जाता है। अगर धर्म की बात भी कभी तुम्हारे हृदय से निकलती है तो वह भी जब तक नीचे तल पर न आ जाये तब तक नहीं निकलती है। इसलिए तो लोग रामायण पढ़ते हैं, अष्टावक्र की गीता नहीं पढ़ते। रामायण पुराने ढंग की फिल्मी बात है। वह पुरानी कथा है। वही ट्राइएंगल सभी फिल्मों में है-दो प्रेमी और एक प्रेयसी । तुम जरा रामायण की कथा का गणित तो समझो वही का वही है, जो हर फिल्म का गणित है। दो प्रेमी एक प्रेयसी के लिए लड़ रहे हैं। सारा संघर्ष है, ट्राइएंगल, त्रिकोण चल रहा है। वह जरा पुराने ढंग की शैली है। पुराने दिन में लिखी गयी है। लेकिन मामला तो वही है। राम, रावण, सीता की कथा खूब लोग देखते रहे सदियों से। राम कथा चलती ही रहती है। रामलीला चलती रहती है गांव-गांव, अष्टावक्र की गीता कौन पढ़ता है ! वहां कोई त्रिकोण नहीं है। कृष्ण की गीता में भी थोड़ा रस मालूम होता है, क्योंकि युद्ध है, हिंसा है और सनसनी है। सनसनीखेज है ! महाभारत का पूरा दृश्य बड़ा सनसनीखेज है। तुमने देखा, जब युद्ध होने लगता है तो तुम ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर ही एकदम अखबार पूछने लगते हो, 'अखबार कहां? क्या हुआ? भारत-पाकिस्तान के बीच क्या हो रहा है? इजिप्त - इजरायल के बीच क्या हो रहा है? कहीं युद्ध चल पड़े तो लोगों की आंखों में चमक आ जाती है। कहीं किसी की छाती में छुरा भुंकने लगे 'तो बस, तुम तल्लीन हो कर रुक जाते हो। राह पर देखा - मां की दवा लेने जाते थे साइकिल पर भागे दो आदमी लड़ रहे थे। भूल गये मां और सब टिका दी साइकिल और खड़े हो गये देखने के लिए कि क्या हो रहा है। बड़ा रस आता है ! जहं । युद्ध है, हिंसा है, कामवासना वहां तुम्हारा रस है। लेकिन इससे जागरण तो नहीं होगा ! इससे तुम 'ऊपर तो नहीं उठोगे । इसी से तो तुम जमीन के कीड़े बन गये और जमीन पर घिसट रहे हो। तुम्हारी रीढ़ ही टूट गयी है। तो मुझे तुमसे कुछ बात कहनी हो तो दो उपाय हैं या तो मैं सारी बात को उस तल पर ले आऊं जहां तुम समझ सकते हो। लेकिन तब मुझे कहने में रस नहीं है, क्योंकि क्या प्रयोजन है? वह तो फिल्में तुमसे कह रही हैं, नाटककार तुमसे कह रहे हैं, रामलोलाए तुमसे कह रही हैं। वह तो कोई भी कह देगा। सारी दुनिया उसे कह रही है। उसके लिए कहीं तुम्हें जाने की जरूरत नहीं है। सारी दुनिया तुम्हें खींच कर बुला रही है कि आओ, यहां कह देंगे। दूसरा उपाय यह है कि तुम्हें मैं समझाऊं कि तुम्हारा सिर इतना नीचा नहीं है जितना तुमने मान रखा है। जरा सीधे खड़े होओ, झुकना छोड़ो। जो अभी सिर के ऊपर से निकला जा रहा है, जरा सिर को ऊंचा करो तो सिर के भीतर से निकलने लगेगा | और एक बार सिर के भीतर से निकलने लगे तो थोड़े और ऊंचे उठो । तुम्हारी ऊंचाई का कोई अंत है! तुम्हारे भीतर भगवान छिपा बैठा है। आखिरी ऊंचाई तुम्हारी मालकियत है- तुम्हारी नियति है, तुम्हारा भाग्य है। तुम इतने ऊंचे हो सकते हो जितनी ऊंचाई हो सकती है-गौरीशंकर पीछे छूट जायें,
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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