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________________ छोटा बच्चा स्कूल जाता है, तो उससे हम कोई विश्वविदयालय की बातें नहीं करते। पहली कक्षा के विद्यार्थी से पहली कक्षा की ही बात करते हैं। लेकिन जैसे-जैसे दूसरी कक्षा में जाने का समय करीब आने लगता है वैसे-वैसे उससे हम थोड़ी-सी दूसरी कक्षा की भी बात करते हैं। वह उसकी समझ में नहीं आती। आती भी है, नहीं भी आती। धुंधली- धुंधली आती है। लेकिन उसकी बात करनी पड़ती है। अब दूसरी कक्षा में जाने का समय आ गया। जो विद्यार्थी उस दूसरी कक्षा में जाने की बात न समझ पायेंगे, उन्हें फिर पहली कक्षा में अगले वर्ष लौट आना पड़ेगा। जो थोड़ा-सा रस दूसरी कक्षा में जाने का उठा लेंगे, वे दूसरी कक्षा में प्रविष्ट हो जायेंगे! ऐसे धीरे-धीरे फिर तीसरी कक्षा है, और कक्षाएं हैं, और कक्षाएं हैं। तुम्हारे सिर पर से बात निकल जाती है, उसका क्या अर्थ? उसका इतना अर्थ है कि तुमने अब तक उतनी ऊंचाई तक अपने सिर को उठाने की कोशिश नहीं की। अब दो उपाय हैं. या तो मैं अपनी बात को नीचे ले आऊं ताकि तुम्हारे हृदय से निकल जाये..। तुम्हारे हृदय से फिल्म निकल जाती है, नाटक निकल जाता है; अष्टावक्र नहीं निकलते। फिल्म में बुद्ध से बुद्ध आदमी भी रस-विमुग्ध हो कर बैठ जाता है। तीन घंटे भूल ही जाता है। सब निकल जाता है। देखते हो तुम, फिल्म भी ऊपर नहीं उठ पाती। ___ 'विजयानंद मेरे पास आते हैं। तो उनको मैंने कहा. कुछ थोड़ा ऊपर इसे खींचो। उन्होंने कहा : ऊपर खींचो तो चलती नहीं। लोग नीची से नीची बात चाहते हैं। फिर भी मैंने उनसे कहा थोड़ी हिम्मत करो। उन्होंने हिम्मत की, तो दिवाला डावांडोल हो गया। दो-तीन फिल्में बनायीं कि जरा ऊंचा ले जायें, लेकिन वे चलती नहीं। कोई देखने नहीं आता। तुम वही देखना चाहते हो जो तुम हो। तुम अपनी ही प्रतिछवि देखना चाहते हो। मुल्ला नसरुद्दीन एक फिल्म देखने गया। उसमें एक दृश्य आता है कि एक स्त्री अपने वस्त्र उतार रही है तालाब के किनारे। मुल्ला बड़ी उत्सुकता से देख रहा है। रीढ़ सीधी कर ली। बिलकुल ध्यानस्थ हो गया जैसा बुद्ध वगैरह बैठते हैं, जब वे परमात्मा के निकट पहुंचते हैं तब रीढ़ सीधी हो जाती है, श्वास ठहर जाती है, अपलक आंखें नहीं झुकती, नहीं हिलती। वह बिलकुल अपलक हो गया। वही नहीं हो गया, पूरा सिनेमा हॉल हो गया। सब अपनी सीटों पर सध कर बैठ गये, हठयोगी हो गये एक क्षण को। वह आखिरी वस्त्र उतारने जा रही थी, बस आखिरी वस्त्र रह गया था, तभी एक ट्रेन धड़धड़ाती हुई निकल गयी। वह स्त्री उस तरफ पड़ गयी, तालाब उस तरफ पड़ गया। सब बड़े उदास और थके मन से वापिस अपनी कुर्सियों से टिक कर बैठ गये। लेकिन मुल्ला ने जाने का नाम न लिया। यह पहला शो था। वह दूसरे में भी बैठा रहा। वह तीसरे में भी बैठा रहा। आखिर मैनेजर आया। उसने कहा : 'क्या विचार है? क्या यहीं रहने का तय कर लिया?' उसने कहा कभी तो ट्रेन लेट होगी। मैं जाऊंगा नहीं! कभी... भारतीय ट्रेनें हैं, इनका क्या भरोसा! कभी आधा घड़ी भी लेट हो गयी, क्षण भर की बात है! वह नग्न स्त्री को देखने का......| ट्रेन तो निकल जाती है, तब तक वह स्त्री तालाब में तैर
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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