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________________ तरफ से जो जगत को देखेगा उसके लिए कर्म महत्वपूर्ण मालूम होगा, क्योंकि समय है गति, किया है महत्वपूर्ण। जो आकाश की तरफ से जगत को देखेगा, उसके लिए कर्म इत्यादि व्यर्थ हैं। आकाश है शून्य : वहां कोई गति नहीं। जो समय की तरफ से जगत को देखेगा उसके लिए जगत वैत, वस्तुत: अनेक मालूम होगा। मैं हूं कल नहीं था कल फिर नहीं हो जाऊंगा। मेरे मरने से तुम न मरोगे; न मेरे जन्म से तुम्हारा जन्म हुआ। निश्चित ही मैं अलग तुम अलग। वृक्ष अलग, पहाड़-पर्वत अलग, सब अलगअलग। समय में प्रत्येक चीज परिभाषित है, भिन्न-भिन्न है। आकाश में सभी चीजें एक हैं। आकाश एक है। समय की धारा चीजों को खंडों में बांट देती है। समय विभाजन का स्रोत है। इसलिए जिसने समय की तरफ से अस्तित्व को देखा, वह देखेगा अनेक; जिसने आकाश की तरफ से देखा, वह देखेगा एक। जिसने समय की तरफ से देखा वह सोचेगा भाषा में साधना की, सिद्धि की। चलना है, पहुंचना है, गंतव्य है कहीं'; श्रम करना है, संकल्प करना है, चेष्टा करनी है, प्रयास करना है-तब कहीं पहुंच पायेंगे। जो आकाश की तरफ से देखेगा, उसके लिए कहीं कोई गंतव्य नहीं। सिद्धि मनुष्य का स्वभाव है। आकाश तो यहां है, कहीं और नहीं। जाने को कहां है! तुम जहां हो वहीं आकाश है। आकाश तो बाहर- भीतर सबमें व्याप्त है! आकाश तो सदा से है, एक क्षण को भी खोया नहीं। समय में चलना हो सकता है, आकाश में कैसा चलना! कहीं भी रही, उसी आकाश में हो। तो आकाश में यात्रा का कोई उपाय नहीं; समय में यात्रा हो सकती है। इस बात को खयाल में लेना। महावीर की परंपरा कहलाती है श्रमण। श्रमण' का अर्थ होता है. श्रम। श्रम करोगे तो पा सकोगे। बिना श्रम के परमात्मा नहीं पाया जा सकता, न सत्य पाया जा सकता है। हिंदू परंपरा कहलाती है ब्राह्मण। उसका अर्थ है कि ब्रह्म तुम हो, पाने की कोई बात नहीं। जागना है, जानना है। हो तो तुम हो ही, स्वभाव से हो। ब्रह्म तो तुम्हारे भीतर बैठा ही हुआ है। यह आकाश की तरफ से देखना है। तुम चकित होओगे, महावीर ने तो आत्मा को भी जो नाम दिया है वह है समय। इसलिए महावीर की समाधि का नाम है सामायिक। मैं तो एक जैन घर में पैदा हुआ। उस संप्रदाय का नाम है 'समैया'। वह समय से बना शब्द है। महावीर तो कहते हैं. समय में लीन हो जाओ तो ध्यान लग गया, सामायिक हो गई, समय में ठहर जाओ तो पहुंच गये। हिंदू परंपरा समय को मूल्य नहीं देती, इसलिए श्रम को भी मूल्य नहीं देती। आकाश का मूल्य है। ये सारे अष्टावक्र के सूत्र आकाश के सूत्र हैं। और जैसा अलबर्ट आइंस्टीन कहता है आकाश और समय एक ही अस्तित्व के दो पहलू हैं, दोनों तरफ से पहुंचना हो सकता है। जो समय को मान कर चलेगा, उसके लिए समर्पण संभव नहीं-संघर्ष, संकल्प। जो आकाश को मान कर चलेगा, वह अभी झुक जाये, यहीं झुक जाये-समर्पण संभव है। श्रद्धा! श्रम की कोई बात नहीं। बोध मात्र काफी है। कुछ करना नहीं है। जो समय को मान कर चलेगा, उसे शुभ और अशुभ में संघर्ष है। अशुभ को हटाना
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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