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________________ कहां थे? कहां तक पहुंच गए थे? आप कहां पहुंचे हैं? ' लेकिन तब दुख होता है, तब पीड़ा लगती है, तब अड़चन होती है। धर्म के नाम पर बड़े झूठ चलते हैं। इन झूठों को गिरा देना धार्मिक आदमी का लक्षण है। इसलिए तो मैं कहता हूं : धार्मिक आदमी हिंदू मुसलमान, जैन, बौद्ध नहीं हो सकता । धार्मिक आदमी तो सरल होगा, सहज होगा। वह तो जो जानता है उतना ही कहेगा, वह भी झिझक कर कहेगा; जो नहीं जानता, उस का तो कभी दावा नहीं करेगा। वह तो अपने को खोल कर रख देगा कि ऐसा- ऐसा, इतना मैं जानता हूं थोड़ा-बहुत मैं जानता हूं । एक मां अपनी बेटी से कह रही थी कि जब मैं तुम्हारी उम्र की थी तो मैंने किसी पुरुष का स्पर्श भी नहीं किया था और तुम गर्भवती होकर आ गई कॉलेज से ! यह तो बताओ कि जब तुम्हारे बच्चे होंगे, तुम उनसे क्या कहोगी ? उस लड़की ने कहा : 'कहेंगे तो हम भी यही, लेकिन जरा संकोच से कहेंगे, आप बड़े निस्संकोच से कह रही हैं।' समझे मतलब? उस लड़की ने कहा : 'कहेंगे तो हम भी यही कि तुम्हारी उम्र में हमारा कुंवारापन बिलकुल पवित्र था, हमने किसी पुरुष को छुआ भी नहीं था, कहेंगे तो हम भी यही जो आप कह रही हैं; लेकिन हम इतने निस्संकोच भाव से न कह सकेंगे जितने निस्संकोच भाव से आप कह रही हैं। हम थोड़े झिझकेंगे।' यह झूठ है। यह झूठ मत कहें। जैसा है वैसा ही कहें। जो है वही कहें। जितना जाना उसमें रत्ती भर मत जोड़े, सजायें भी मत। ऐसा निपट सत्य के साथ जो जीता है, उसे अगर किसी दिन महासत्य मिल जाता है तो आश्चर्य क्या ! इंच भर झूठे दावे न करें। दावे करने की बड़ी आकांक्षा होती है, क्योंकि अहंकार झूठे दावों से जीता है। अहंकार झूठ है और झूठ से उसका भोजन है, झूठ से उसको भोजन मिलता है। और इसलिए तुम्हारे झूठ को कोई जरा टटोल दे, झझकोर दे, तो तुम कितने नाराज होते हो! अब तुम कहते हो, भगवान ने बनाई दुनिया । और बेटा पूछ ले : ' भगवान को किसने बनाया?' बस भन्ना जाते हो, नाराज हो जाते हो। कहते हो : 'यह बात मत पूछो। जब बड़े होओगे, तुम समझ लोगे।' और तुम्हें भी पता है कि बड़े हो गये तुम भी, अभी समझे कुछ नहीं । यह कैसे समझ लेगा? यही तुम्हारे बाप तुमसे कहते रहे कि बड़े हो जाओगे, समझ लोगे। बड़े तुम हो गये, अभी तक कुछ समझे नहीं। यही तुम इससे कह रहे, यही यह अपने बेटों से कहता रहेगा। ऐसे झूठ चलते पीढ़ीदर-पीढ़ी और जीवन विकृत होता चला जाता है। तुम सच हो जाओ। अज्ञान बिलकुल स्वाभाविक है, पता हमें नहीं है। इसका एक पहलू तो यह है कि हमें पता नहीं है; इसका दूसरा पहलू यह है कि जीवन रहस्य है, पता हो ही नहीं सकता। इसका एक पहलू तो यह है कि मुझे पता नहीं है, इसका दूसरा पहलू यह है कि जीवन अज्ञात रहस्य है, पहेली है, इसलिए
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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