SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तब तुम्हारे जीवन में एक बड़ा नैसर्गिक सौंदर्य होगा, एक प्रसाद होगा ! तुम हार जाओगे, तो भी तुम निश्चित सो जाओगे। तुम जीत जाओगे, तो भी तनाव न होगा मन में, तो भी तुम निश्चित सो जाओगे। क्योंकि तुम अब अपने सिर पर लेते ही नहीं । तुम्हारी हालत ऐसी हो जाएगी जैसे एक छोटा-सा बच्चा अपने बाप का हाथ पकड़ कर जाता है। जंगल है घना, बीहड़ है, पशु-पक्षियों का डर है - बाप चिंतित है, बेटा मस्त है! वह बड़ा ही मस्त है, जंगल देख कर उसके आनंद का ठिकाना नहीं। वह हर चीज के संबंध में प्रश्न पूछ रहा है। यह फूल क्या है?' शेर भी सामने आ जाए तो बेटा मस्ती से खड़ा रहेगा। उसे क्या फिक्र है? बाप के हाथ में हाथ। एक जापानी कथा है। एक युवक विवाहित हुआ अपनी पत्नी को ले कर - समुराई था, क्षत्रिय था - अपनी पत्नी को लेकर नाव में बैठा। दूसरी तरफ उसका गांव था। बड़ा तूफान आया, अंधड़ उठा, नाव डावाडोल होने लगी, डूबने - डूबने को होने लगी। पत्नी तो बहुत घबड़ा गई। मगर युवक शांत रहा। उसकी शांति ऐसी थी जैसे बुद्ध की प्रतिमा हो। उसकी पत्नी ने कहा, तुम शांत बैठे हो, नाव डूबने को हो रही, मौत करीब है ! उस युवक ने झटके से अपनी तलवार बाहर निकाली, पत्नी के गले पर तलवार लगा दी। पत्नी तो हंसने लगी। उसने कहा : क्या तुम मुझे डरवाना चाहते हो? पति ने कहा : तुझे डर नहीं लगता? तलवार तेरी गर्दन पर रखी, जरा-सा इशारा कि गर्दन इस तरफ हो जाएगी। उसने कहा : जब तलवार तुम्हारे हाथ में है तो मुझे भय कैसा? उसने तलवार वापिस रख ली। उसने कहा : यह मेरा उत्तर है। जब तूफान - आधी उसके हाथ में है तो मैं क्यों परेशान होऊं ? डुबाना होगा तो डूबेंगे, बचाना होगा तो बचेंगे। जब तलवार मेंरे हाथ है तो तू नहीं घबराती। मुझसे तेरा प्रेम है, इसलिए न ! कल विवाह न हुआ था, उसके पहले अगर मैंने तलवार तेरे गले पर रखी होती तो? तो तू चीख मारती । आज तू नहीं घबडाती, क्योंकि प्रेम का एक सेतु बन गया। ऐसा सेतु मेरे और परमात्मा के बीच है, इसलिए मैं नहीं घबड़ाता । तूफान आए, चलो ठीक, तूफान का मजा लेंगे। डूबेंगे, तो डूबने का मजा लेंगे। क्योंकि सब उसके हाथ में है, हम उसके हाथ के बाहर नहीं हैं। फिर चिंता कैसी? चितया दुःखं जायते..... और कोई ढंग से चिंता पैदा नहीं होती, बस चिंता एक ही है कि तुम कर्ता हो। कर्ता हो तो चिंता है, चिंता है तो दुख । इति निश्चयी सुखी शांत सर्वत्र गलितस्पृह । ऐसा जिसने निश्चयपूर्वक जाना, अनुभव से निचोड़ा - वह व्यक्ति सुखी हो जाता है, शांत हो जाता है, उसकी सारी स्पृहा समाप्त हो जाती है। नीड़ नहीं करता पंछी की
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy