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________________ होओगे। तब तुम्हारा कोई झगड़ा न रह जाएगा कि कोई गीता पढ़ रहा है, कोई कुरान, कोई धम्मपद, कोई झगड़ा न रहा। अगर तीनों ही साखी को साध रहे तो कोई झगड़ा न रहा, क्योंकि घटना तो साखी से घटने वाली है, कुरान पढ़ने से नहीं, न गीता पढ़ने से। फिर क्या झगड़ा है? अभी तक झगड़ा रहा है। झगड़ा रहा है, क्योंकि गीता वाला कहता है, गीता पढ़ने से ज्ञान होगा; और कुरान वाला कहता है, कुरान पढ़ने से होगा, गीता पढ़ने से कभी हुआ? कैसे हो सकता है! मैं तुमसे कहता हूं. न तो गीता से ज्ञान होता है न कुरान से; ज्ञान होता है साक्षी- भाव से पाठ करने से। फिर बात बदल गई। फिर तुम अगर गीता को साक्षी- भाव से पढ़ो तो गीता से हो जाएगा; कुरान को पढ़ो, कुरान से हो जाएगा। तुम चकित होओगे यह जान कर कि कृष्णमूर्ति जासूसी उपन्यास के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं पढ़ते। जासूसी उपन्यास से भी हो जाएगा, साक्षी की बात है। तुम चकित ही होओगे कि जासूसी उपन्यास और कृष्णमूर्ति! पर कृष्णमूर्ति ने कभी कुछ और पढ़ा ही नहीं। वे तो कहते हैं मैं सौभाग्यशाली हूं कि मैंने गीता कुरान, बाइबिल नहीं पढ़े। क्योंकि इतने अभागे लोग उलझे हैं, यह देख कर बात तो ठीक ही लगती है। तो जासूसी उपन्यास ही पढ़ते रहे। पर वहीं से हो जाएगा अगर होशपूर्वक पढ़ा। अगर तुम फिल्म भी होशपूर्वक देख लो जाकर तो ध्यान हो रहा है। तुम कहां हो क्या कर रहे, इससे कोई भी संबंध नहीं; कैसे हो, जागे हो कि सोये, बस इतना स्मरण रहे। अगर जागे नहीं हो तो परमात्मा तुम्हारे द्वार पर दस्तक देता है और लौट-लौट जाता है, तुम्हें सोया पाता है। तुम दस्तक सुनते ही नहीं। तुम नींद में सुनते भी हो तो कुछ का कुछ समझ लेते हो। आ कर चले गए क्षण बार-बार हो कर उदार कब कितने छले गए! बजी खिड़कियां हिली पखुडिया कलियों पर कुछ छाये मैंने देखा सूर्य किरण से दौड़ द्वार तक आए किंतु लगे दरवाजे देखे ठिठक गए वे मौन गुपचुप के संवादों जैसे लौट गए वे कोन! सूरज ढले गए
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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