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________________ लेकिन धीरे- धीरे मुट्ठी बंधेगी। तब तुम चकित होओगे कि जागने में तो होश बना ही रहता है एक दिन अचानक तुम चौंक कर पाओगे कि नींद लग गई और होश बना है। उस दिन ऐसा अभूतपूर्व आनंद होता है! उस दिन बांसुरी बज उठी! उस दिन बैकुंठ के द्वार खुले उस दिन स्वर्ग तुम्हारा हुआ। जिस दिन तुम सो जाओगे रात में और होश की धारा बहती ही रही; तुमने देखा अपनी देह को सोए हुए अपने मन को शलथ, थका हुआ, हारा हुआ पड़े हुए जिस दिन तुम नींद में भी जाग जाओगे बस फिर कुछ करने को न रहा, परिक्रमा पूरी हो गई। जागने में तो अब जाग ही जाओगे, जब सोने में जाग गये...। साधारणत: तो हम जागे भी जागे नहीं, सोये हैं। होना इससे उल्टा चाहिए। कहता हूं. रे मन, अब नीरव हो जा ससर सर्प के सदृश्य जहां है उत्स वहीं पर सो जा साखी बन कर देख देह का धर्म सहज चलने दे जो तेरा गंतव्य वहा तक चल कर कोन गया है गल जाने दे स्वर्ण रूप में उसे स्वयं ढलने दे। जाना कहीं है भी नहीं। कब कोन गया है! अगर तुम सहज साक्षी बन जाओ तो स्वर्ण खुद ढल जाता है, आभूषण बन जाते हैं। परमात्मा खुद ढल आता है सरक आता है और तुम दिव्य हो जाते हो, तुम बुद्ध हो जाते हो। कहता हूं रे मन अब नीख हो जा ससर सर्प के सदृश्य । जहां है उत्स वहीं पर सो जा। और उत्स तो तुम्हारा चैतन्य है। उत्स तो तुम्हारा जागरण भाव है। आये हो तुम गहन जागृति से, उतरे हो परमात्मा से। वहीं है तुम्हारी जड़ों का फैलाव। जहां है उत्स वहीं पर सो जा साखी बन कर देख देह का धर्म सहज चलने दे। साखी तुम बन जाओ। ये दो शब्द समझ लेने जैसे हैं. साखी और सखी। बस दो ही मार्ग हैं-या तो सखी बन जाओ, वह प्रेम का मार्ग है; या साखी बन जाओ, साक्षी बन जाओ, वह ज्ञान का मार्ग है। और जरा ही सा फर्क है सखी और साखी में, एक मात्रा का फर्क है, कुछ बड़ा फर्क नहीं। तो जो मैंने कहा पाठ के लिए, वह साक्षी बनने को कहा। साक्षी बन जाओ। और तब तुम चकित
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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