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________________ सुख-दुख, जन्म और मृत्यु भी मिले हैं। सोचो, देखो जरा-तुमने जन्म तो सोचा नहीं था कि हो। तुमने जन्म पाने के लिए तो कुछ किया नहीं था। तुमने किसी से पूछा भी नहीं था कि तुम जन्म लेना चाहते कि नहीं? तुम्हारी मर्जी का सवाल ही नहीं है। तुमने अचानक एक दिन अपने को जीवन में पाया। जन्म घटा है; तुम्हारा कर्तृत्व नहीं है कुछ। ऐसे ही एक दिन मौत भी घटेगी। तुमसे कोई पूछेगा नहीं कि अब मरने की इच्छा है या नहीं? रिटायर होना चाहते कि नहीं? कोई नहीं पूछेगा। तुम कोई हड़ताल वगैरह भी न कर सकोगे कि जल्दी रिटायरमेंट किया जा रहा है, अभी हम और जीना चाहते हैं! कोई उपाय नहीं। मौत दवार पर दस्तक भी नहीं देती, पूछती भी नहीं, सलाह-मशविरा भी नहीं लेती-बस उठा कर ले जाती है। जन्म एक दिन अचानक घटता है, मृत्यु एक दिन अचानक घटती है। फिर इन दोनों के बीच में तुम कर्ता होने का कितना पागलपन करते हो! जब जीवन की असली घटनाओं पर तुम्हारा कोई बस नहीं, जन्म पर तुम्हारा बस नहीं, मृत्यु पर तुम्हारा बस नहीं तो थोड़ा तो जागो-इन दोनों के बीच की घटनाओं पर कैसे बस हो सकता है? न शुरू पर बस, न अंत पर बस-तो मध्य पर कैसे बस हो सकता है? इतना ही अर्थ है जब हम कहते हैं : भगवान करता है, दैवयोग से, भाग्य से.........| इतना ही अर्थ है, इसी सत्य की स्वीकृति है कि न शुरू में पूछता कोई हमसे, न बाद में हमसे कोई पूछता, तो बीच में हम नाहक शोरगुल क्यों करें? तो जब न शुरू में कोई पूछता, न बाद में कोई पूछता, तो बीच में भी हम क्यों नाहक चिल्लाएं, दुखी हों? तो बीच को भी हम स्वीकार करते हैं। इस स्वीकार में परम शांति है। जो निश्चयपूर्वक ऐसा जानता है, फिर उसके लिए कुछ साध्य नहीं रह गया; परमात्मा जो करवाता वह करता है। जब तुम्हारा कोई साध्य नहीं रह गया तो फिर जीवन में कभी विफलता नहीं होती; परमात्मा हराता तो तुम हारते, परमात्मा जिताता तो तुम जीतते। जीत तो उसकी, हार तो उसकी। 'ऐसा व्यक्ति श्रम-रहित हुआ, कर्म करता हुआ......!' खयाल करना इन शब्दों पर श्रम-रहित हुआ, कर्म करता हुआ श्रम तो समाप्त हो गया, अब कोई मेहनत नहीं है जीवन में, अब तो खेल है। वह जो करवाता; जैसे नाटक होता है, पीछे नाटककार छिपा है : वह जो कहलवाता, हम कहते हैं। वह जो प्रॉम्द करता है पीछे से, हम दोहराते हैं। वह जैसी वेशभूषा सजा देता है, हम वैसी वेशभूषा कर लेते हैं। वह राम बना देता तो राम बन जाते, रावण बना देता तो रावण बन जाते हैं। कोई ऐसा थोड़े ही है कि रावण झंझट खड़ी करता है कि मुझको रावण क्यों बनाया जा रहा है, मैं राम बनूंगा! ऐसी झंझट कभी-कभी हो जाती है, तो झंझट झंझट मालूम होती है और मूढ़तापूर्ण मालम होती है। ___एक गांव में ऐसा हुआ रामलीला होती थी। और जब सीता का स्वयंवर रचा तो रावण भी आया था। संभावना थी कि रावण धनुष को तोड़ दे। लेकिन तत्क्षण: राजनीति का पुराना जाल!...... :खबर आई लंका से कि लंका में आग लग गई है, जो कि बात झूठी थी, कूटनीतिक थी। वहीं से तो रामायण का सारा उपद्रव शुरू हुआ। लंका में आग लग गई तो भागा, पकड़ा होगा ऐरोप्लेन रावण ने उसी क्षण।
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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