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________________ तुम तो आख बंद करते हो तो अंधेरा ही अंधेरा है, आख खुली रहे तो थोड़ी रोशनी मालूम पड़ती है। तुम तो बाहर की रोशनी से परिचित हो; भीतर की रोशनी तो अभी दिखाई पड़ी नहीं; भीतर की आख तो अभी खुली नहीं, अंतस-चक्षु तो अभी अंधे हैं। वहां तो अंधेरा है, घनघोर अंधेरा है। तुम कैसे मानो कि हजार-हजार सूरज जलते हैं! भीतर तो तुम जाते हो तो विचार, वासना, इन्हीं का ऊहापोह चलता है। विचार भाग रहे हैं, भीड़ चल रही है। अंग्रेज विचारक डेविड ह्यूम ने कहा है : जब भी मैं भीतर जाता हूं तो सिवाय विचारों के कुछ भी नहीं पाता। और ये सब ज्ञानी कहते हैं कि भीतर आत्मा मिलेगी। सिवाय विचार के कुछ नहीं मिलता। अब इसको कोन समझाये कि 'किसको विचार मिलते हैं?' जिसको विचार मिलते हैं वह तो विचार नहीं है। यह कहता है, जब मैं भीतर जाता हूं तो सिवाय विचार के कुछ भी नहीं मिलता। तो एक बात तो पक्की है कि तुम विचार से अलग हो, तुम भिन्न हो, तुम देखते. हो कि विचार चल रहे हैं! लेकिन हाम को किसी ने मालूम होता है, कहा नहीं। वह लिख गया है कि साक्रेटीज कहें कि उपनिषद कहें कि भीतर आत्मा है, मैंने तो बहुत प्रयोग करके देखा, सिवाय विचारों के वहां कुछ भी नहीं। मगर किसने देखा? यह किसने जाना कि सिर्फ विचार ही विचार हैं। तुम कमरे के भीतर गये और लौट कर आ कर कहने लगे कि मैं तो नहीं मिलता कमरे में, फर्नीचर भरा है। लेकिन तुम कमरे के भीतर गए तो एक बात तो पक्की है कि तुम फर्नीचर नहीं हो। तुमने भीतर जा कर फर्नीचर भरा देखा, एक बात तो पक्की है कि तुम देखने वाले हो। कुर्सी तो नहीं देखती और कुर्सियों को। दीवालें तो नहीं देखती दीवालों को। तुम द्रष्टा हो। जो तुम्हारी दशा होगी उतना ही तुम्हारा अनुभव होगा। 'जो भीतर विकल्प से शून्य है और बाहर भ्रांत हुए पुरुष की भांति मालूम होता है ऐसे स्वच्छंदचारी की भिन्न-भिन्न दशाओं को वैसी ही दशा वाले पुरुष जानते हैं। ___यह शब्द 'स्वच्छंदचारी' समझ लेना। यह बड़ा अनूठा शब्द है। स्वच्छंद का अर्थ होता है जो अपने स्वभाव के छंद को उपलब्ध हो गया। इसका तुमने जो अर्थ सुना है वह ठीक अर्थ नहीं है। तुम तो समझते हो कि स्वच्छंद का मतलब होता है कि जिसने सब नियम इत्यादि तोड़ दिये, मर्यादाहीन, भ्रष्ट! लेकिन स्वच्छंद शब्द को तो सोचो। इसका अर्थ होता है. स्वयं के छंद को उपलब्ध; जो एक ही छंद जानता है-स्वभाव का; जो अपने स्वभाव के अनुकूल चलता है। सहज' अर्थ होता है स्वच्छंद का। स्व-स्फूर्त' अर्थ होता है स्वच्छंद का। स्वच्छंदता स्वतंत्रता से भी ऊपर है। लोग तो अक्सर समझते हैं कि स्वतंत्रता ऊंची बात है स्वच्छंदता नीची बात है, स्वच्छंदता तो विकृति है। लेकिन स्वच्छंदता बड़ी ऊंची बात है। तीन तरह की स्थितियां हैं। परतंत्र. परतंत्र का अर्थ होता है. जो दूसरे के हिसाब से चलता है; जिसको दूसरे चलाते हैं: पर+तंत्र; जिसका तंत्र दूसरे में है। तुम उसे कहो उठो, तो उठता है, तुम कहो बैठो तो बैठता है। स्वतंत्र का अर्थ होता है : जिसका तंत्र स्वयं के पास है; जो उठना चाहता है तो योजना करके उठता है; बैठना चाहता है तो योजना करके बैठता है; जिसकी अपनी जीवन पद्धति है
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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