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________________ थे वे लोग। काश, मैं उनके समय में होता ! मैं तो विद्यार्थी था, लेकिन जैसी मेरी आदत थी, मैं बीच में उठ कर खड़ा हो गया। मैने उनसे कहा, आप शब्द वापिस ले लो। उन्होंने कहा, क्यों? मैंने कहा, यह आपकी लफ्फाजी है, क्योंकि मैं आपसे कहता हूं कि आप उस समय में भी थे और आप बुद्ध के पास नहीं गए। वे थोड़े घबराए। वे थोड़े बेचैन भी हुए कि यह मामला क्या हो गया? मैंने कहा, मैं निश्चित कहता हूं कि आप उस समय में भी थे। रहे तो होंगे कहीं न पुनर्जन्म को मानते हैं? हिंदू ब्राह्मण थे- कहा कि मानता हूं । मैंने कहा. कहीं तो रहे होंगे न ! पशु -पक्षी थे कि आदमी, आप क्या कहते हैं? अब पशु -पक्षी कहने को वे भी राजी नहीं थे, तो कहा कि आदमी रहा होऊंगा । लेकिन तब आप बुद्ध के पास गए नहीं, क्योंकि गंगोत्री में गंगा दिखाई कहां पड़ती है! तो गंगा तो तब दिखाई पड़ती है जब बहुत बड़ी हो जाती है, लेकिन तब स्रोत से बहुत दूर निकल जाते हैं। आज बुद्ध का इतना बड़ा नाम आपको दिखाई पड़ रहा है, क्योंकि हजारों करोड़ों मूर्तियां हैं, करोड़ों मानने वाले हैं—इसलिए आप प्रभावित हैं। आप बुद्ध से प्रभावित नहीं हैं; आप, बुद्ध का यह जो बड़ा नाम है, इससे प्रभावित हैं। मैं आपसे कहता हूं कि आप इस जिंदगी में कभी किसी संत के पास गए? मैं उन्हें जानता था। संत वगैरह तो दूर, वे छाया न संत की पड़ने दें। मांसाहारी, शराबी, वेश्यागामी... मैं उन्हें भलीभांति जानता था। मैंने कहा कि आप सच-सच कह दो। आपको मैंने और जगहों में तो देखा–क्लबघरों में देखा है, शराब पीते देखा है। और मुझे शक है कि अभी भी आप पीए हुए हैं। नहीं तो इतनी बात आप कह नहीं सकते थे- बेहोशी में कह रहे होंगे कि बुद्ध के समय में अगर होता धन्यभाग! यह नशे में कह रहे होंगे आप। क्योंकि आपमें मैंने धर्म की तरफ तो कभी कोई झुकाव नहीं देखा, आप पक्के राजनीतिज्ञ हैं! बिना राजनीतिज्ञ हुए कोई वाइस चांसलर आजकल हो ही नहीं सकता। गधे से गधे राजनीतिज्ञ वाइस चांसलर हो कर बैठे हैं। तो मैंने उनसे कहा कि आप वापिस ले लो ये शब्द । आप बुद्ध को पहचान सकेंगे? उन्हें कोई राह न सूझी। तो उन्होंने कहा कि बात तो समझ में आती है कि शायद मैं न गया होता अगर बुद्ध होते भी । शायद यह बात भी ठीक है कि उनका नाम ही अब इतना बड़ा है.. पीछे मुझे बुलाया और कहा कि कुछ भी कहना हो तो एकांत में आकर कह दिया करो। ऐसा बीच भीड़ में खड़े हो गए ! मैंने कहा कि आप भी सोच-समझकर, जब तक मैं इस विश्वविद्यालय में हूं वक्तव्य
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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