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________________ पारसी मिल जाएं; और जहां आकर सबने अपनी जीवन- धारा को एक गंगा में डुबा लिया है, जहाँ कुछ भेद नहीं - ऐसी सार्वभौमता ! और यहां कोई सार्वभौमता की बात नहीं कर रहा है और यहां कोई सर्व – धर्म – समन्वय की बकवास नहीं कर रहा है। कोई समझा नहीं रहा है कि अल्ला ईश्वर तेरे नाम' टो, 'अल्ला ईश्वर तेरे नाम!' कोई समझा नहीं रहा है। इसकी कोई बात ही क्या उठानी, यह बात ही बेहूदी है। जिस दिन तुमने कहा अल्ला ईश्वर तेरे नाम उस दिन तुमने मान ही लिया कि दो नाम विपरीत हैं, तुम मिलाने की राजनीति बिठा रहे हो। मान ही लिया कि भिन्न हैं। यहां कोई समझा नहीं रहा है कि अल्ला ईश्वर तेरे नाम । यहां तो अनजाने अनायास ही यह घटना घट रही है। अल्ला पुकारो तो, ईश्वर पुकारो तो - एक ही को तुम पुकार रहे हो। और इसकी कोई चेष्टा नहीं है । चकित होते हैं लोग जब पहली दफा आते हैं। देख कर हैरान हो जाते हैं कि मुसलमान भी गैरिक वस्त्रों में! 'कृष्ण मुहम्मद' को देखा? 'राधा मुहम्मद' को देखा? एक सज्जन मुझसे आकर बोले कि राधा हिंदू है कि मुसलमान? मैंने कहा, क्या करना है? राधा राधा है, हिंदू - मुसलमान से क्या लेना-देना? नहीं, उन्होंने कहा, नाम से तो हिंदू लगती है, लेकिन कृष्ण मुहम्मद के साथ जाते देखी। यूं कृष्ण मुहम्मद की पत्नी है वह । कृष्ण मुहम्मद हो गए हैं फासले बिना किसी के गिराए, बिना किसी की चेष्टा के, बिना किसी तालमेल बिठाने का उपाय किए, अपने आप घट रही है बात। अपने- आप जब घटती है तो उसका मूल्य बहुत है उसका सौंदर्य अनूठा, उसमें एक प्रसाद होता है। ऐसा संन्यास पृथ्वी पर पहले कभी घटा नहीं । तुम एक अनूठे सौभाग्य से गुजर रहे हो । समझोगे, तो चूकोगे नहीं। नहीं समझे, तो पीछे बहुत पछताओगे। तुम एक अनूठे स्रोत के करीब हो जहां से बड़ी धाराएं निकलेंगी- गंगोत्री के करीब हो । पीछे बहुत पछताओगे। पीछे गंगा बहुत बड़ी हो जाएगी। सागर पहुंचते-पहुंचते सागर जैसी बड़ी हो जाएगी। लेकिन अभी गोमुख से जल गिर रहा है अभी गंगोत्री पर है। अभी जिन्होंने इस जल को पी लिया, फिर दुबारा नहीं ऐसा मौका मिलेगा। फिर काशी में भी गंगा है, लेकिन फिर गंदी बहुत हो गई है। फिर न मालूम कितने नाले. आ गिरे। गंगोत्री पर जो मजा है, जो स्वच्छता है, फिर दुबारा नहीं । तो जितने जल्दी तुम संन्यास ले सको उतना शुभ है। यह संन्यास की गंगा तो बड़ी होगी-यह पूरी पृथ्वी को घेरेगी। ये गैरिक वस्त्र अब कहीं एक जगह रुकने वाले नहीं है- ये सारी पृथ्वी को घेरेंगे। पीछे तुम आओगे-कहीं प्रयाग में, काशी में - तुम्हारी मर्जी है। लेकिन मैं तुमसे कहता हूं अभी गंगोत्री पर आ जाओ तो अच्छा है। मैं एक विश्वविद्यालय में विद्यार्थी था। तो मेरे जो वाइस चांसलर थे, वे बुद्धजयति पर एक दाल बोले कि ' कई बार विचार करता हूं कि कैसा धन्यभागी होता मैं अगर बुद्ध के समय में होता उनके चरणों में जाता! धन्यभागी थे वे लोग जो बुद्ध के पास उठे-बैठे; जिन्होंने बुद्ध के साथ सांस ली, जिन्होंने बुद्ध की आंखों में झांका, जो बुद्ध के चरणों पर चले, जो बुद्ध की छाया में बैठे। धन्य
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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