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________________ आपसे संबंधित होने के लिए क्या संन्यास अनिवार्य है? मैंने अभी संन्यास नहीं लिया है और न व्यक्तिगत रूप से आपसे मिला ही हूं। फिर भी आपके प्रति अजीब अनुभूतियों से भर जाता हूं कभी रोता हूं और कभी आपको निहारता ही रह जाता । प्रभु, ऐसा क्यों होता है? और यह कि ' क्या करूं? पहली बात, पूछा है. 'आपसे संबंधित होने के लिए क्या संन्यास अनिवार्य है?' यह ऐसे ही पूछना है, जैसे कोई पूछे कि क्या आपसे संबंधित होने के लिए संबंधित होना अनिवार्य है? संन्यास तो केवल ढंग है, बहाना है संबंधित होने का। यह तो एक उपाय है संबंधित होने का। किसी व्यक्ति का हाथ आप अपने हाथ में ले लेते हैं, तो क्या हम पूछते हैं कि प्रेम प्रगट करने के लिए क्या हाथ में हाथ लेना अनिवार्य है? किसी को हम छाती से लगा लेते हैं, तो क्या हम पूछते हैं कि क्या प्रेम के होने के लिए छाती से लगाना अनिवार्य है ? अनिवार्य तो नहीं है। प्रेम तो बिना छाती से लगाए भी हो सकता है। लेकिन जब प्रेम हो, तो बिना छाती से लगाए रह सकोगे? फिर से सुनो। प्रेम तो हाथ हाथ में पकड़े बिना भी हो सकता है। लेकिन जब प्रेम होगा, तो हाथ हाथ में लिए बिना रह सकोगे? साथ साथ आते हैं। अभिव्यक्तियां हैं। जिससे तुम्हें प्रेम है, उसके पास कुछ भेंट ले जाते हो–फूल ही सही, फूल नहीं तो फूल की पांखुरी ही सही । क्या प्रेम के लिए भेंट ले जाना अनिवार्य है ? जरा भी नहीं। लेकिन जब प्रेम होता है तो देने का भाव होता है। संन्यास क्या है? संन्यास है इस बात की घोषणा कि मैं अपने को देने को तैयार हूं! संन्यास है इस बात की घोषणा कि आप मेरा हाथ अपने हाथ में ले लो! संन्यास है इस बात की घोषणा क आप अगर हाथ मेरा अपने हाथ में लोगे, तो मैं छुड़ा कर भागंगा नहीं। संन्यास तो केवल एक भावभंगिमा है-और बड़ी बहुमूल्य है। मैं आपके संग-साथ हूं आप भी मेरे संग-साथ रहना- इस बात की एक आंतरिक अभिव्यक्ति है। पूछते हैं, 'आपसे संबंधित होने के लिए क्या संन्यास अनिवार्य है?' और जिसने पूछा है, वे ज्यादा देर संन्यास से बच न सकेंगे। पूछा ही इसीलिए है कि अब बात खड़ी हो गई है प्राण में। अब मुश्किल खड़ी हो गई है। अब संन्यास लिए बिना रहा न जाएगा; चुनौती आ गई है। भय भी है, इसलिए प्रश्न उठा है। लेकिन जब जीवन में कभी कोई विधायक का जन्म होता है, जब भी कोई विधायक दिशा खुलती है, तो फिर कितने ही भय हों, उनके बावजूद आदमी को जाना ही पड़ता है। पुकार तुमने सुन ली है। इसीलिए तो रो रहे हो, इसीलिए तो निहार रहे हो। अब कब तक रोते
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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