SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जनक के सूत्र बड़े महत्वपूर्ण हैं। न ठहरने से, न चलने से, न सोने से अब कोई लगाव है। जो होता है, जितना होता है, उतने से राजी हूं। अर्थ -अनर्थ कुछ भी नहीं है। कारण-ठहरता हुआ, जाता हुआ, सोता हुआ मैं सुखपूर्वक स्थित हां खोल दो नाव जिधर बहती है, बहने दो नाव तो तिर सकती है मेरे बिना भी मैं बिना नाव भी डूब सकूँगा चलो खोल दो नाव चुपचाप जिधर बहती है, बहने दो मुझे रहने दो अगर मैं छोड़ पतवार निस्सीम पारावार तकता हूं खोल दो नाव जिधर बहती हो, बहने दो। जनक के सूत्र तो समर्पण के सूत्र हैं। यह तो अष्टावक्र ही जनक के भीतर से जगमगा रहे हैं। यह तो गुरु ही शिष्य से बोला है। यह तो गुरु ने ही शिष्य के हृदय में उठायी हैं ये तरंगें। और तुम एक बात खयाल करोगे कि अष्टावक्र कुछ बोलते हैं, फिर चुप हो जाते हैं, फिर जनक को बोलने देते हैं। सुनते हैं कि जो अष्टावक्र ने बोला, वह जनक के हृदय तक पहुंच गया पल्लवित होने लगा, उसमें फूल खिलने लगे; और एक बात तुम खयाल करना: अष्टावक्र जो बोलते हैं वह बीज जैसा है और जनक जो बोलते हैं वह फूल जैसा है। इसलिए जनक के वचन और भी सुंदर मालूम होते हैं, अष्टावक्र से भी ज्यादा सुंदर मालूम होते हैं। लेकिन वे वचन अष्टावक्र के ही हैं। अष्टावक्र बीज की तरह गिर जाते हैं जनक के हृदय में; वहां अंकुरित होते, पल्लवित होते, फूल खिलते हैं। उन फूलों की सुवास इन वचनों में है। अष्टावक्र अपूर्व आनंद को उपलब्ध हुए होंगे जनक की ये बातें सुन कर जैसे कोई मां, पहली दफे जब उसका बेटा बोलता है तो आह्लादित हो जाती है, ऐसे जनक के ये वचन सुन कर अष्टावक्र खूब आह्लादित हुए होंगे शायद ही कभी शिष्य ने किसी गुरु को इतना तृप्त किया हो! मैंने सुना है, एक हसीद फकीर हुआ| वह बड़ा प्रसिद्ध पंडित था। बड़ा ज्ञानी था। और जैसा ज्ञानियों को अक्सर झंझट हो जाती है, उसको भी हुई जब वह कोई पचास वर्ष का था तो नास्तिक हो गया। तब तक उसने न मालूम कितने लोगों को धर्म की शिक्षा दी। फिर वह नास्तिक हो गया। इन पचास वर्षों में न मालूम कितने लोग उसके कारण संतत्व को उपलब्ध हुए और फिर वह नास्तिक हो गया। सबने उसका साथ छोड़ दिया, लेकिन उसका एक शिष्य रबी मेयर उसके पास आता रहा। वह अपने गुरु को बार-बार कहता रहा कि वापिस लौट आओ, यह तुमने क्या रंग पकड़ा आखिर में? लेकिन शिष्य गुरु को समझाए भी तो कैसे समझाए! गुरु बड़ा तर्कशास्त्री था; वह सारी बातें खंडित
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy