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________________ 'किया हुआ कर्म कुछ भी वास्तव में आत्मकृत नहीं है। ऐसा यथार्थ विचार कर मैं जब जो कुछ कर्म करने को आ पड़ता है उसको करके सुखपूर्वक स्थित हो ___ यह सुनो, यह वचन बड़ा मीठा है। और मीठा ही नहीं, उतना ही सत्य भी कि जो आ पड़ा, कर लेता हूं। भूख लगी तो भोजन कर लेता हूं। नींद आई तो सो जाता हूं। कोई बोला तो उत्तर दे लेता हूं। लेकिन एक बात के प्रति जागा रहता हूं कि इसमें मैं कर नहीं रहा हो जो आ पड़ता है, कर लेता हूं। लौटती है लहर सागर को अगम गंभीर क्षण है, शांति रखो, मौन धारो! और जो होना यही है, हो क्योंकि सारा भूत ही इसकी गवाही है कि जो होना हुआ है, वही हो कर रहा है। हुई की लंबी पुरानी आदिहीन कथा-व्यथा है लिखी, सुधियों में संजोई जान या अनजान, भूली या भुलाई लौटती है लहर सागर को अगम शांति रखो, मौन धारो। और जो होना यही है, हो क्योंकि सारा भूत ही इसकी गवाही है कि जो होना हुआ है, वही हो कर रहा है। पीछे लौट कर देखो। जरा अपने जीवन की कहानी के पन्ने पलटो। जरा अतीत में खोजबीन करो, खोदो। तुम पाओगे : जो होना है वही होकर रहा है। तुम नाहक ही बीच में परेशान हो लिए। तुम्हारे बिना भी होकर रहता। तुम इतने परेशान न होते तो भी होकर रहता। हार हुई तुम परेशान न होते, तो भी हो जाती। होनी थी तो हो जाती। तुम परेशानी बचा सकते थे, हार नहीं बदल सकते थे। आदमी के हाथ में बस इतना ही है कि परेशानी बचा ले, दुख बचा ले, पीड़ा बचा ले, संताप बचा ले। जो होना है, होकर रहेगा। जो होना है, होता ही रहा है। लेकिन हमारा मन इससे बगावत करना चाहता है। क्योंकि जब हम कुछ करते हैं, तभी हमें मजा आता है, नशा आता है, तभी लगता है : मैं हूं! एक गीत कल मैं पढ़ रहा था : प्रार्थना करनी मुझे है और इसे स्वीकारना, संभव बनानासरल उतना ही तुम्हें है! परमात्मा से प्रार्थना कर रहा है भक्त:
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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