SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तो कर लो! उसने भोजन कर लिया। भोजन करके उसने फिर पूछा कि बेटे कहा हैं? क्योंकि ऐसा कभी न हुआ था, वे भोजन उसके साथ ही करते थे। तो उसने कहा, इसके पहले कि मैं बेटों के संबंध में कुछ कहूं एक बात तुमसे पूछती हूं। अगर कोई आदमी बीस साल पहले अमानत में कुछ मेरे पास रख गया था, दो हीरे रख गया था, आज वह वापिस मांगने आया, तो मैं उसे लौटा दूं कि नहीं? फकीर ने कहा, यह भी कोई पूछने की बात है? यह भी तू पूछने योग्य सोचती है? लौटा ही देने थे, मेरे से पूछने की क्या बात थी? उसके हीरे उसे वापिस कर देने थे, इसमें हमारा क्या लेना-देना है? तू मुझसे पूछने को क्यों रुकी? उसने कहा, बस, ठीक हो गया। पूछने को रुक गई थी, अब आप आ जाएं! वह कमरे में ले गई, दोनों बेटे मुर्दा पड़े थे। पास के एक मकान में खेल रहे थे और छत गिर गई। फकीर ने देखा, बात को समझा, हंसने लगा। कहा. तूने भी ठीक किया। ठीक है, बीस साल पहले कोई हमें दे गया था, अदृश्य, दैवयोग, परमात्मा या जो नाम पसंद हो-आज ले गया, हम बीच में कौन? जब ये बेटे नहीं थे, तब भी हम मजे में थे, अब ये बेटे नहीं हैं तो हम फिर वैसे हो गए जैसे हम पहले थे। इनके आने-जाने से क्या भेद पड़ता है! तूने ठीक किया। तूने मुझे ठीक जगाया। जो भी हो रहा है, वह मेरे कारण हो रहा है-इससे ही 'मैं' की भ्रांति पैदा होती है। जो हो रहा है, वह समस्त के कारण हो रहा है, मैं सिर्फ द्रष्टा-मात्र हूं-ऐसी समझ प्रगाढ़ हो जाए, ऐसी ज्योति जले अकंप, निधूम, तो साक्षी का जन्म होता है। अष्टावक्र ने जनक को कहा. तू देख ले अपने को इन सब बातों पर कस कर। अगर इन सब बातों पर ठीक उतर जाता हो, तो तूने जो घोषणा की, वह परम घोषणा है। अगर इन बातों पर ठीक न उतरता हो, तो अपनी घोषणा वापिस ले ले। क्योंकि झूठी घोषणाएं खतरनाक हैं। तू मुझे सुन कर विश्वास मत बना, तू मुझे सुन कर श्रद्धा को जगा तू सत्य में स्वयं जाग। मेरी जाग तेरी जाग नहीं हो सकती और मेरी रोशनी तेरी रोशनी नहीं हो सकती। मेरी आंखें मेरे काम आएंगी और मेरे पैर से मैं चलूंगा। तुझे तेरे पैर चाहिए और तेरी आंखें चाहिए और तेरी रोशनी चाहिए। तू ठीक से पहचान ले तू मुझसे प्रभावित तो नहीं हो गया है? कृष्णमूर्ति निरंतर कहते हैं किसी से प्रभावित मत होना। वे ठीक कहते हैं। वह अष्टावक्र का ही सूत्र है। किसी से प्रभावित मत होना। जागो, अनुकरण में मत पड़ जाना। अनुकरण तो सिर्फ नाटक है, अभिनय है; जीवन का उससे कुछ लेना-देना नहीं। यही मैं तुमसे भी कहता हूं। मुझे सुनो लेकिन सुन लेना काफी नहीं है। सुनते-सुनते जागो! जो सुनो, उसको पकड़ कर मत बैठ जाना। नहीं तो पिंजरा हाथ लगेगा, पक्षी उड़ जाएगा या मर जाएगा। जो सुनो, उसे जल्दी खोल लेना, गुन लेना। जो सुनो, उसे जल्दी रूपांतरित करना; पचाना; नहीं तो अपच हो जाएगा। उसे पचाना! वह तुम्हारा खून बने, तुम्हारे खून में बहे, तुम्हारी हड्डी बने, तुम्हारी मज्जा बने, तुम्हारा प्राण बने-तो श्रद्धा!
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy