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________________ न त्याग मेरा । 'जिसने अंतःकरण से कषाय को त्याग दिया है और जो द्वंद्व - रहित और आशा रहित है ... ।' अब न तो कोई द्वंद्व है भीतर, क्योंकि दो बचे नहीं, सिर्फ साक्षी बचा है। साक्षी सदा एक है। और यह शब्द बड़ा अदभुत है. निरद्वंद्वस्य निराशिषः । जो द्वंद्व से रहित और आशा से रहित है! अब जो कोई भी आशा नहीं करता कि ऐसा हो, वैसा हो, यह मिले, वह मिले - जिसके लिए कल समाप्त हो गया ! दो कल हैं हमारे आज के दोनों तरफ। एक कल है बीता हुआ, उससे द्वंद्व पैदा होता है। एक कल है आने वाला, उससे आशा जगती, वासना जगती। जिसने अतीत के कल को छोड़ दिया, जिसने कह दिया कि जो भी मैं अब तक था, सब सपना था वह मुक्त हुआ अतीत से। और जिसने सब आशा छोड़ दी, जिसने कहा जो मैं हूं वह काफी हूं अब मुझे कुछ और होना नहीं कहीं और जाना नहीं; जहं । हूं वहीं मेरा घर है जहां हूं वैसा होना ही मेरा स्वभाव है जैसा हूं तैसा ही होना मेरा नियति है अन्यथा की कोई चाह नहीं - उसने भविष्य को मिटा दिया। जिसने अतीत और भविष्य को पोंछ डाला, वह शाश्वत में प्रवेश कर जाता है। अंतस्मक्तकषायस्य निद्वन्द्वस्य निराशिषः । यदृच्छयागतो भोगो न दुखाय न तुष्टये । उसे जो मिल जाए, वह दैवयोग से, भाग्य से - सुख मिले तो, दुख मिले तो। यह समझना। यह सूत्र याद रखना, भूलना मत। तुम कहते हो : जो मिलता है, अपने कृत्य से, कर्म से..। यह कर्म की फिलॉसफी नहीं है। यह साक्षी का दर्शन है । अष्टावक्र कहते हैं. उसे दुख मिलता है तो वह कहता है : दैवयोग, प्रभु इच्छा, अदृश्य की इच्छा! दुख मिलता तो, सुख मिलता तो! न तो सुख में वह कहता है कि मेरे कारण मिला, न दुख में कहता है मेरे कारण मिला। वह तो कहता , मैं तो सिर्फ देखनेवाला हूं यह मिलना न मिलना उसकी लीला ! फिर कैसा खेद ! न तो फिर प्राप्त वस्तु में दुख है और न सुख है। जीसस ने सूली पर आखिरी क्षण में कहा है : तेरी मर्जी पूरी हो! मेरी मर्जी मत सुन! मैं क्या कहता हूं इस पर ध्यान मत दे तेरी मर्जी पूरी हो! क्योंकि मैं तो जो भी कहूंगा वह गलत होगा और तू जो भी कहेगा, वही ठीक है। मैं चाहूं या न चाहूं वही हो जो तेरी मर्जी है जब भी तुम प्रभु से प्रार्थना करते हो और कहते हो ऐसा कर दे, वैसा कर दे-तभी तुम्हारी प्रार्थना विकृत हो गई, खंडित हो गई, प्रार्थना न रही। तुम तो प्रभु को सुझाव देने लगे। तुम तो कहने लगे मैं तुझसे ज्यादा समझदार, तू यह क्या कर रहा है? एक सूफी फकीर हुआ उसके दो बेटे थे-जुडवां बेटे, बड़े प्यारे बेटे थे! और बड़ी देर से बुढ़ापे में पैदा हुए थे। उसका बड़ा मोह था उन पर । वह एक दिन मस्जिद में प्रवचन दे कर लौटा घर आया तो वह आते ही से रोज पूछता था कि आज बेटे कहां हैं? अक्सर तो वे मस्जिद जाते थे, आज नहीं गए थे सुनने। उसने पूछा पत्नी से बेटे कहां हैं? उसने कहा, आते होंगे, कहीं खेलते होंगे, तुम भोजन
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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