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________________ तेल को। नहीं, यह होता नहीं। भय से मोक्ष नहीं निकलता। अभय से मोक्ष निकलता है। फिर मोक्ष का भय क्या है? अष्टावक्र क्यों कहते हैं कि देख ले तू अपने भीतर खोजबीन करके, कहीं मोक्ष का भय तो नहीं है? मोक्ष का भय क्या है? मोक्ष का भय महामृत्यु का भय है। मोक्ष तुम्हारी मृत्यु है। तुम्हारे मुक्त होने का एक ही अर्थ है. तुम्हारा बिलकुल मिट जाना। तब जो शेष बचेगा वही मोक्ष है, तुम जहां बिलकुल न रहोगे; तुम्हारी रूपरेखा भी न बचेगी; तुम बिलकुल खो जाओगे जहां। मृत्यु में तो आदमी बचता है, मोक्ष में बिलकुल नहीं बचता। मृत्यु में तो शरीर खोता है; मन बचता है, अहंकार बचता है, संस्कार बचते हैं, सब कुछ बच जाता है, सिर्फ शरीर बदल जाता है। मृत्यु में तो केवल वस्त्र बदलते हैं। पुराने जीर्ण -शीर्ण वस्त्र छूट जाते हैं, नए वस्त्र मिल जाते हैं। मोक्ष में शरीर भी गया, संस्कार भी गए, अहंकार भी गया, मन भी गया: तुमने जो जाना, अनुभव किया सब गया। तुम गए! तुम पूरे के पूरे गए समग्रता से गए! फिर जो शून्य बचता है, तुम्हारे अभाव में, तुम्हारी गैर मौजूदगी में जो बचता है वही मोक्ष है, वही परमात्मा है, वही सत्य है। तुम तो ऐसे चले जाओगे जैसे प्रकाश के आने पर अधंकार चला जाता है। मोक्ष के आने पर तुम न बचोगे -मोक्ष महामृत्यु उपनिषद कहते हैं; गुरु महामृत्यु है। क्योंकि गुरु के माध्यम से मोक्ष की तरफ चलना पड़ता है। गुरु सिखाता ही है मरने की कला। अष्टावक्र ठीक कहते हैं आश्चर्य मोक्षकामस्य मोक्षादेव विभीषिका। मैंने देखा है, अष्टावक्र कहते हैं कि मोक्ष की कामना करने वाले लोग भी मोक्ष से ही डरे होते हैं। जनक तू जरा गौर से देख ले, कहीं तेरे भीतर भी कोई भय की रेखा तो नहीं है। अगर है, तो फिर मोक्ष की ये बातें सब व्यर्थ हैं, अनर्गल प्रलाप हैं, पागल का प्रलाप हैं! इनमें फिर कुछ भी सार नहीं। मोक्ष का स्वर तो तुम्हारे भीतर तभी फूटता है, जब तुम्हारे सब स्वर बंद हो जाते हैं। जब तुम्हारी सब आवाज खो जाती है, तभी उस महासंगीत में तरोबोर होने की घड़ी आती है। तुम खाली करो सिंहासन! सिंहासन पर बैठे –बैठे मोक्ष नहीं है। जब तक तुम हो, तब तक मोक्ष नहीं है। जैसे ही तुम न हुए मिटे, झुके, खोए-मोक्ष है! मोक्ष था ही सदा से-तुम्हारे कारण दिखाई न पड़ता था, तुम ओट थे; तुम पर्दा थे; तुम ही अड़चन थे; तुम ही बाधा थे। अब बड़ी अड़चन उठी। मोक्ष का तो अर्थ ही यह है कि जिसने इस सचाई को पहचान लिया कि मैं ही रोग हूं। मक्ष का अर्थ तुम्हारी मुक्ति नहीं है मोक्ष का अर्थ है-तुमसे मुक्ति। जिसने पहचान लिया कि मैं ही रोग हं सारे रोग का आधार मैं ही हूं और जिसने कहा कि ठीक अब मैं यह आधार छोड़ता हूं, अब मैं न होने की तैयारी दिखलाता हूं, अब मैं मरने को राजी हूं: हो-हो कर देख लिया, कुछ पाया नहीं, हो-हो कर देख लिया, सिवाय खोने के कुछ भी नहीं हुआ हों-हों कर देख लिया, अनेक बार हो कर देख लिया, कितने जन्मों तक हो कर देख लिया, काफी देर हो चुकी है। तुम बहुत
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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