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________________ उन्होंने कहा, मैं चलाता हूं । जो पूछा रहा था, उसने कहा कि क्षमा करें, आप जरा बड़ी विक्षिप्त-सी बात कह रहे हैं! आप नहीं थे, तब कौन चलाता था? राम ने कहा, ऐसा कभी हुआ ही नहीं कि मैं न रहा होऊं । 'आप मरेंगे कि नहीं?' उस आदमी ने पूछा। राम ने कहा, ऐसा कभी हुआ ही नहीं कि मैं मरा होऊं या मर सकूं। कठनाई क्या हो रही है? दोनों के बीच दो अलग भाषाओं में बात हो रही है। वह आदमी देख रहा है राम का रूप, आकार, यह देह, यह व्यक्ति । और राम बात कर रहे हैं उसकी जहां न कोई व्यक्ति है, न रूप, न कोई देह । आखिर राम ने कहा कि सुनो जी, तुम समझ नहीं पा रहे। मैं राम के संबंध में नहीं कह रहा हूं। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि राम के चलाए चांद-तारे चलते हैं, कि राम ने बनाई दुनिया | मैंने बनाई ! मैं राम के पार हूं! जब मैसूर को सूली लगी और उसने घोषणा कर दी अनलहक की कि मैं ही सत्य हूं - तो मुसलमान न समझ पाए। क्योंकि उन्होंने समझा, यह आदमी खुदा होने का दावा कर रहा है। मुसलमानों ने तो पहली ही बात पकड़ रखी है कि उसकी मर्जी के बिना पत्ता नहीं हिलता । वह दूसरा वक्तव्य खयाल में नहीं है। जब पहली बात पूरी हो जाती है तो दूसरी भी घटती है। जब तुम अपने को बिलकुल खो देते हो, तो वही बचता है। तो जब मंसूर ने कहा अनलहक - मैं सत्य हूं मैं ब्रह्म हूं तो वे क्या कह रहे हैं? वे यह कह रहे हैं कि मैसूर तो अब बचा नहीं, अब ब्रह्म ही बचा है। अगर मैसूर ने यह बात भारत कही होती तो कोई सूली न चढ़ाता। हमने पूजा की होती सदियों तक उनके पैरों पर फूल चढ़ाए होते। हम कहते, यह तो उपनिषद का सार है. अहं ब्रह्मास्मि, मैं ब्रह्म हूं! ये दो वक्तव्य विपरीत नहीं हैं, विपरीत दिखाई पड़ते हैं। एक वक्तव्य है तुम्हारी जगह से, क्योंकि अहंकार छोड़ना है, और एक वक्तव्य है उस जगह से, जहां अहंकार बचा नहीं। जहां अहंकार नहीं बचा वहां तो सिर्फ परमात्मा ही बचा - इतना अकेला परमात्मा बचा कि अब परमात्मा यह भी क्या कहे कि परमात्मा है। किससे कहना ? किसको कहना ? किसके बाबत कहना ? इसलिए तो महावीर ने कहा. अप्पा सो परमप्पा! आत्मा ही परमात्मा हो जाती है कोई और परमात्मा नहीं है। इसमें कुछ ईश्वर का विरोध नहीं है। हिंदू गलत समझे। यह तो उपनिषद का सार है। इसलिए तो बुद्ध ने यह भी कह दिया कि न परमात्मा है, न आत्मा, क्योंकि इन दोनों में तो द्वंद्व मालूम होता है कि दो हैं। इसलिए बुद्ध ने कहा जो है, उस संबंध में मैं कुछ कहूंगा ही नहीं । जो नहीं है, बस उसी तक अपने वक्तव्य को रखूंगा-न आत्मा है, न परमात्मा है। फिर जो है, उस संबंध में कुछ भी न कहूंगा। वह तुम इन दोनों को छोड़ दो और जान लो ।
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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