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________________ मधुरिमा तुममें व्याप्त होती जाए ! धीरे - धीरे गुरु तुम्हारे भीतर उठने लगे, तुम्हारे कंठ से तुम्हारे हृदय में जाने लगे! एक मुसलमान फकीर बायजीद एक मरघट से निकलता था। अचानक उसे ऐसा भास हुआ कि कोई उससे कहता है हृदय के अंतरतम से कि रुक जा ! इस मरघट में कुछ होने को है । तो उसने और मित्रों को विदा कर दिया। मित्रों ने कहा भी कि यह मरघट है, यह कोई रुकने की जगह नहीं, रात तकलीफ में पड़ जाओगे, भूत-प्रेत होते हैं। उसने कहा कि भीतर मुझे कुछ कहता है, रुक जा ! आप लोग जाएं। तो वैसे भी नहीं रुकना चाहते थे, मरघट में कौन रुकना चाहता था! लेकिन अकेला बायजीद रुक गया। फिर भीतर से उसको आवाज हुई कि इसके पहले कि सूरज ढल जाए तू बहुत सी खोपडियां इकट्ठी कर ले। थोड़ा भयभीत भी हुआ कि यह मामला क्या है यह कोई भूत-प्रेत तो नहीं, जो मुझे इस तरह के सुझाव दे रहा है! लेकिन उसने कहा, मेरा अगर परमात्मा पर भरोसा है तो वह जाने । उसने कुछ खोपडियां इकट्ठी कर लीं। जब वह खोपडियां इकट्ठी कर रहा था तो भीतर से आवाज हुई एक-एक खोपड़ी को गौर से देख। तो उसने कहा, खोपड़ी में गौर से देखने को क्या है? सभी खोपडियां एक जैसी होती हैं। फिर भी आवाज हुई कि कोई खोपड़ी एक जैसी नहीं होती। दो आदमी एक जैसे नहीं होते तो दो खोपडियां कैसे एक जैसी हो सकती हैं? देख, गौर से देख! उसने एक-एक खोपड़ी को गौर से देखा, वह बड़ा चकित हुआ। कुछ खोपड़ियाँ थीं जिनके दोनों कान के बीच में दीवाल थी- तो एक कान में कुछ पड़े तो दूसरे कान तक नहीं पहुंचे। कुछ खोपडियां थीं, जिनके दोनों कान के बीच में सुरंग थी - एक कान में पहुंचे तो दूसरे कान तक पहुंच जाए। और कुछ खोपडियां थीं, जिनमें न केवल दोनों कानों के बीच में सुरंग थी, बल्कि उस सुरंग के मध्य से एक और सुरंग आती थी जो हृदय तक चली गई थी, जो नीचे कंठ में उतर गई थी। वह बड़ा हैरान हुआ। उसने कहा, हम तो सोचते थे सभी खोपडियां एक जैसी होती हैं। हे प्रभु! अब इसका अर्थ और बता दो ! तो उसने कहा, पहली खोपडियां उन लोगों की हैं, जो सुनते मालूम पड़ते थे, लेकिन जिन्होंने कभी सुना नहीं। दूसरी खोपडियां उन लोगों की हैं, जो सुनते थे, लेकिन दूसरे कान से निकाल देते थे- जिन्होंने कभी गुना नहीं। और तीसरी खोपड़ियाँ उन लोगों की हैं, जिन्होंने सुना और जो हृदय में पी गए। ये तीसरी खोपड़ियां सत्सगियों की हैं। जब मैंने बायजीद के जीवन में यह उल्लेख पढ़ा तो बड़ा प्यारा लगा. तीसरी खोपडियां सत्सगियों की हैं! ये समादर योग्य हैं! सत्संग का अर्थ होता है गुरु के पास। अगर बोले गुरु तो उसके शब्द सुनना, अगर न बोले तो उसका मौन सुनना । कुछ करने को कहे तो कर देना कुछ न करने को कहे तो न करना । गुरु के पास होना। इस पास होने को अपने भीतर उतरने देना। वह जो गुरु की तरंग है, उस तरंग के साथ तरंगित होना। वह जो गुरु की भाव - दशा है, थोड़े-थोड़े उसके साथ उड़ना ।
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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