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________________ लाओत्सु ने कहा है. ज्ञानी अज्ञानी जैसा होता है। जीसस ने कहा है. जो बच्चों की भांति भोले हैं, वे मेरे प्रभु के राज्य में प्रवेश करेंगे। बच्चों की भांति भोले हैं! बात साफ है। बच्चे में पांडित्य नहीं होता। बच्चे का अभी कोई अनुभव ही नहीं है कि पांडित्य हो सके। अभी कहीं पढ़ा-लिखा नहीं, सोचा-सुना नहीं अभी तो भोला- भाला है। ऐसा भोला-भाला अज्ञान, जानता हुआ अज्ञान तुम कुछ जानते नहीं, लेकिन तुम प्रज्वलित अग्नि हो; तुम्हारा प्रकाश सब तरफ फैलता है। निर्वेद की दशा बड़ी अनूठी दशा है। इसलिए परम ज्ञानियों ने वेदों को तो अज्ञानियों के लिए माना है। अष्टावक्र भी वही मानते हैं, बुद्ध भी वही मानते हैं, महावीर भी वही मानते हैं। वेदों को तो माना है उनके लिए जिन्हें अभी कुछ भी समझ नहीं है। उनके लिए वेद हैं। जिनको कुछ भी समझ है, वे तो निर्वेद में अपना बोध खोजते हैं, वेद में नहीं। उनकी आंखें तो शब्दातीत शून्य की तरफ उठने लगती हैं, वंद्वातीत सत्य की तरफ उनकी उड़ान शुरू हो जाती है।। __ तुमसे मैं इन सारे सिद्धातों की इसीलिए बात कर रहा हूं ताकि तुम जान कर मुक्त हो सको तुम परिचित हो लो, तो मुक्त हो जाओ। परिचित नहीं हुए तो मुक्त न हो सकोगे। अगर तुम मुझे सुनते ही रहे शांत भाव से, तो तुम धीरे- धीरे पाओगे सब आया और सब गया! खतरा तो तब है कि जब तुम सुनते-सुनते मुझे, ज्ञान को पकड़ने लगो, तब खतरा है। वेद बनने लगा, तुम निर्वेद से चूके। मगर मैं तुम्हें टिकने न दूंगा। इसलिए रोज बदल लेता हूं। एक दिन बोलता हूं बुद्ध पर तो तुम धीरे – धीरे राजी होने लगते हो। जैसे ही मुझे लगा कि अब राजी हो रहे, तुम ज्ञानी बन रहे, जैसे ही मुझे लगा कि अब बुद्ध तुम्हारा वेद बने जा रहे हैं..। आदमी इतनी जल्दी सुरक्षा पकड़ता है, इतनी जल्दी मान लेना चाहता है कि जान लिया-बिना श्रम के, बिना चेष्टा के! मुफ्त कुछ मिल जाए तो ज्ञानी बन जाने का मजा कौन नहीं लेना चाहता है! सुन ली बुद्ध की बात बड़े प्रसन्न हो गए, गदगद हो गए, थोड़ी जानकारी बढ़ गई-अब उस जानकारी को तुम फेंकते हुए रास्ते पर चलोगे कोई भी मिल जाएगा, फंस जाएगा जाल में, तो तुम उसकी खोपड़ी में वह जानकारी भरोगे, तुम मौका न चूकोगे। तुम्हें कोई भी मौका मिल जाएगा तो किसी भी बहाने तुम अपनी जानकारी को जल्दी से किसी भी आदमी की खूटी पर टल दोगे। तुम निमित्त तलाशोगे कि जहां निमित्त मिल जाए; कोई कुछ पूछ ले, कोई कुछ बात उठा दे, तो तुम अपनी बात ले आओगे। यह जानकारी तुम्हें मुक्त नहीं करवा देगी। यह जानकारी तुम्हारे अहंकार का आभूषण भला हो जाए, यह अहंकार से मुक्ति नहीं होने वाली है। तो जैसे ही मैं देखता हूं कि तुम बुद्ध को वेद मानने लगे तो मुझे तत्क्षण महावीर की बात करनी पड़ती है, ताकि तुम्हारे पैर के नीचे से जमीन फिर खींच ली जाए। ऐसा मैं बहुत बार करूंगा। ऐसा बार-बार होगा तो तुम्हें एक बोध आएगा कि यह जमीन तो बार-बार पैर के नीचे से खींच ली जाती है। किसी दिन तो तुम्हें यह समझ में आएगा कि अब जमीन न बनाएं, अब सुन लें और सिद्धांत को न पकड़े, सुन लें, गुन लें, लेकिन अब किसी मत को ओढ़े न। जिस दिन तुम्हें यह समझ में आ
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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