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________________ चाहिए नहीं। वासना एव संसार इति सर्वा विमुञ्च ताः । तत्यागो वासनात्यागात् स्थितिरद्य यथा तथा । जैसा है फिर तू जहां है फिर तू बिलकुल ठीक है और सुंदर है। कहीं कुछ करने को नहीं है। बस, एक बात जानते रहने को है कि मैं सिर्फ साक्षी - मात्र ! अहो चिन्मात्रम् ! वासना एव संसारः । इस भेद को समझना। लोग तुमसे कहते हैं, वासनाएं छोड़ो तो संसार छूटेगा। लोग तुमसे कहते हैं, वासनाएं छोड़ो तो संसार छूटेगा । वासनाएं नहीं हैं, वासना है। कोई बहुत वासनाएं नहीं हैं, वासना तो एक ही है। वासना तो एक ही वृत्ति है : कुछ होना है, कुछ पाना है। उनके नाम तुम कुछ भी रखो। किसी को धन पाना है, किसी को पद पाना है, किसी को मोक्ष पाना है-वासना तो एक ही है। वासना का अर्थ है : जो मैं हूं उससे मैं राजी नहीं, कुछ और होना चाहिए, तब मैं राजी होऊंगा। वा का अर्थ है : जो है, उससे मैं नाराज, और जो नहीं है वह होना चाहिए। जब तुम जो है उससे राजी हो जाओगे, और जो नहीं है उसकी मांग न करोगे - वासना गई। वासना एव संसार:... | और वासना ही संसार है! कुछ हैं जो कहते हैं: संसार छोड़ो, तब वासना छूटेगी। गलत कहते हैं। संसार छोड़ने से कुछ भी न होगा। तुम जंगल में भाग जाओगे, वासना तुम्हारे साथ छाया की तरह लगी रहेगी। तुम मंदिर बैठ जाओगे वासना तुम्हारा पीछा करेगी; वहीं संसार बन जाएगा। जहां तुम हो, वहां वासना होगी। वासना होगी, वहीं संसार निर्मित हो जाएगा। इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता । वासना एव संसारः... । - वासना संसार है, इसलिए वासना छूट जाए ! इति ज्ञात्वा ...... । ऐसा जो जान लेता है। ताः सर्वा विमुडच ........ - वह सबसे मुक्त हो ही गया। उससे सब छूट गया। इस सत्य को पहचान लिया कि वासना ही संसार है, बस इस पहचान में ही सब छूट हो गई। वासना त्यागात तत्याग:..। - इधर वासना गई, वहां संसार गया। अद्य यथा तथा स्थिति। - फिर तेरी जनक, जहां मर्जी हो, वहां रह। फिर जहां चाहे वहां रह । इस सूत्र को भी खयाल में ले लेना। इसका यह अर्थ हुआ कि फिर जहां पाए अपने को, वहीं ठीक है। फिर जो हो रहा हो, वही ठीक है। महल में पाए तो महल ठीक है, जंगल में पाए तो जंगल
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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