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________________ यह सब अनित्य है, असार है-ऐसा बोध! अवलोकन से याद रखना! शास्त्र से नहीं, उधार नहीं-अवलोकन से। अपनी ही आंख के अनुभव से। आधि-दैविक, आधि- भौतिक, आध्यात्मिक- तीन तरह के दुख। शरीर का दुख, मन का दुख, आत्मा का दुख। बस, इतना ही मिलता है इस जगत में, और कुछ मिलता नहीं। दुख ही दुख मिलता है, और कुछ मिलता नहीं। राख ही राख हाथ आती है अंततः; कुछ और हाथ आता नहीं। असारम् निंदितम् हेयम् इति निश्चित्य शाम्यति। ऐसा जान कर कि यह बिलकुल व्यर्थ है, निंदित है, असार है, शांति उपलब्ध हो जाती है। इति निश्चित्य शाम्यति......। जैसे ही यह निश्चय हो जाता, कि यह जगत असार है, शांति फलित हो जाती है। 'वह कौन काल है और कौन-सी अवस्था है, जिसमें मनुष्य को वंद्व, सुख-दुख न हो? उनकी उपेक्षा कर, यथाप्राप्त वस्तुओं में संतोष करने वाला मनुष्य, सिद्धि को प्राप्त होता है। ' ऐसा कोई काल नहीं है, जैसा कि लोग सोचते हैं, जैसा कि पुराण कहते हैं कि कभी ऐसा था। जैन-शास्त्र कहते हैं. सुखमा सुखमा, एक ऐसा काल था जब सुख ही सुख था फिर ऐसा काल आया जब सुखमा दुखमा, सुख और दुख मिश्रित थे, फिर ऐसा काल आ गया दुखमा-दुखमा, दुख ही दुख। या हिंदू कहते हैं. ऐसा काल था सतयुग, जब सुख ही सुख था, रामराज्य था। लेकिन ये सब मन की कल्पनाएं हैं। दनिया में दो तरह के कल्पनाशील लोगों ने दो तरह की धारणाएं बनाई हैं। एक कहते हैं अतीत में था स्वर्ग। सभी पुराने धर्म यही कहते हैं कि अतीत में सब ठीक था। दूसरा, जो नया पागलपन है दुनिया में, वह है कम्यूनिज्म, साम्यवाद-वे कहते हैं, भविष्य में है स्वर्ग। लेकिन इसे तुम जान लो। स्वर्ग कभी नहीं रहा है। न राम के समय में रामराज्य था। रामराज्य ही होता तो रामकथा के बनने की कोई जगह नहीं थी। अगर सुख ही सुख हो तो समाचार होते ही नहीं। रामकथा बनेगी कहां से? सीता चुराएगा कौन? चौदह वर्ष का वनवास खुद राम को भोगना पड़ा। सब तरह की कलह और सब तरह की राजनीति थी। खुद की सौतेली मां धोखा दे गई। खुद का बाप कामी और लोलुप सिद्ध हुआ। पत्नी की गलत बात मान कर भी लेकिन पत्नी युवा थी-अपने प्यारे से प्यारे बेटे को घर के बाहर भेज दिया, जंगल भेज दिया। तुम कहते हो रामराज्य? ___ सीता को राम ले भी आए लंका से छुड़ा कर, तो जो पहले शब्द उन्होंने कहे, वे कुछ बड़े अच्छे शब्द नहीं। उन्होंने सीता से कहा. तू यह मत सोचना कि तेरे लिए मैंने युद्ध किया; यह युद्ध तो प्रतिष्ठा, कुल के लिए किया। फिर जरा-सी बात पर कि किसी धोबी ने कह दिया अपनी औरत को कि तूने क्या समझा है! कह दिया, मैं कोई राम नहीं हूं। एक रात धोबिन कहीं और रह गई तो धोबी नाराज हो गया, उसने कहा कि मैं कोई राम नहीं हूं तूने समझा क्या है मुझे, कि वर्षों रावण के घर रह आई सीता और फिर भी स्वीकार कर लिया! इतनी-सी बात से, अग्नि-परीक्षा ले लेने के बाद भी, सीता को जंगल में फेंक दिया। राजनीति ज्यादा रही होगी, रामराज्य कम। अगर ऐसा ही था तो सीता के
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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