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________________ कि ट्रेन कहीं छूट तो नहीं गई! एक सज्जन मेरे ही डिब्बे में एक बार यात्रा कर रहे थे, तो रास्ते में उनसे पहचान भी हो गई। वे मौलवी थे, धर्मगुरु थे। जब वे भी यही करने लगे उस स्टेशन पर मैंने देखा कि उन्होंने भी बिछा लिया कपड़ा और अपनी नमाज कर रहे हैं. लेकिन बीच-बीच में देखते जाते है। तो मैं उनके पीछे गया, मैंने उनका सिर पकड़ कर उस तरफ कर दिया। अब वे नमाज में थे तो कुछ बोल भी न सके, नाराज तो बहुत हुए भनभना गए। वे उठे तो एकदम नाराज हो गए कि यह क्या मामला है, आपने मेरा सिर क्यों मोड़ा? मैंने कहा कि या तो इस तरफ कर लो, क्योंकि ट्रेन और परमात्मा दोनों को साथ-साथ याद न कर सकोगे। अगर ट्रेन की याद करनी है तो छोड़ो यह बकवास, काहे के लिए नमाज, कौन कह रहा है? मैंने तो नहीं कहा! अगर परमात्मा को याद करना है तो भूलो इस ट्रेन को कम से कम आधा घड़ी के लिए; छूट जाएगी, बहुत से बहुत इतना ही होगा न परमात्मा रह गया हाथ में और ट्रेन छूट गई तो क्या खाक छूटा? कुछ भी नहीं छूटा-दूसरी ट्रेन आती है। अगर परमात्मा की याद में इतना भी नहीं भूल पाते.. तो मैंने उनसे सूफियों की एक कहानी कही। एक सूफी नमाज पढ़ रहा था और एक औरत भागी हुई निकली उसको धक्का देती हुई उसके कपड़े पर पैर डालती हुई। वह बड़ा नाराज हुआ बड़ा नाराज हुआ, लेकिन नमाज में था तो बोल नहीं सका। जल्दी उसने नमाज पूरी की कि इसका पीछा करें, कैसी बदतमीज औरत, इतना भी ध्यान नहीं! लेकिन जब वह नमाज करके उठा तो वह औरत वापिस आ रही थी, तो उसने उसे पकड़ा। उसने कहा कि सुन बदतमीज औरत! तुझे इतना भी पता नहीं कि कोई ध्यान कर रहा है, नमाज कर रहा है, प्रार्थना कर रहा है? तो इस तरह, इस तरह सलूक करना चाहिए कि तू मुझे धक्का देती मेरे कपड़े पर पैर रखती निकल गई? उसने कहा. क्षमा करें, मुझे याद भी नहीं। मैं अपने प्रेमी से मिलने जाती थी। मुझे याद भी नहीं कि आप कहां बैठे थे, कहा नमाज पढ़ रहे थे, कौन नमाज पढ़ रहा था, कौन नहीं पढ़ रहा था, मुझे याद नहीं। वर्षों बाद मेरा प्रेमी आता था, मैं उसे लेने गांव के बाहर दवार पर जाती थी। क्षमा करें! लेकिन एक बात आपसे पूछती हूं : मैं अपने प्रेमी से मिलने जाती थी- क्षणभंगुर प्रेमी, आप अपने प्रेमी से मिलने गए थे, आपको, मेरे पैर कपड़े पर पड़ गए, मेरा धक्का लगा, इसका समझ में आ गया? आप परमात्मा से मिल रहे थे? तब तो मेरी प्रार्थना आपसे बेहतर है। माना कि मैं किसी के शरीर के मोह में पड़ी हूं और यह मोह ठीक नहीं, लेकिन कम से कम है तो! और माना कि तुम परमात्मा के मोह में पड़े हो, मगर है कहां? कहते हैं, उस सूफी के जीवन में क्रांति हो गई इस बात से। उसने कहा, अब नमाज तभी पड़ेंगे जब प्रेम होगा, अन्यथा क्या सार है? व्रत से नहीं-बोध से। व्रत से नहीं-प्रेम से। व्रत से नहीं, नियम से नहीं, किसी बाहरी अनुशासन से नहीं-अंतरभाव से!
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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